Home

Tuesday, January 8, 2013

शरीर और आत्मा

सभी भक्तों को मेरो ओर से प्रेममयी और भक्तिमयी "जय श्री राधे"। आज तक मैंने जब भी आपसे अपने लेख के माध्यम से बात की तो भक्ति के विषय में ही चर्चा हुई है। परन्तु आज मई कुछ ज्ञान-वार्ता करने का प्रयास कर रहा हूँ। अभी कुछ दिन पूर्व मेरे एक मित्र ने मुझसे यह प्रश्न किया कि आत्मा या शरीर में बड़ा कौन है? यदि ध्यान दिया जाए तो यह प्रश्न ही पूरे तत्व-ज्ञान का सार है। और इस प्रश्न का उत्तर भी केवल वही दे सकता है जो तत्व के ज्ञान को भलीभांति जानता हो। अतः मै स्वयं इस प्रश्न के उत्तर देने में न तो सक्षम हूँ और न ही मुझे यह अधिकार है। परन्तु फिर भी जो कुछ थोडा अपने पूज्य गुरुदेव से सीखा है, उसे इस लेख में उतारने का प्रयास कर रहा हूँ।


सबसे पहले हमें यह जानना चाहिए कि तत्व-ज्ञान सुनने का अधिकारी कौन है। इस सन्दर्भ में श्री वाल्मीकि रामायण में एक अद्भुत प्रसंग आया है। ब्रह्म-ऋषि याज्ञवल्क्य रोज़ाना अपने आश्रम पे तत्व-ज्ञान पर प्रवचन किया करते थे। उसमे मुनि के शिष्यों के साथ साथ महाराज जनक भी आया करते थे। परन्तु मुनि प्रवचन तब तक प्रारंभ नहीं करते, जब तक राजा अपना आसन ग्रहण न कर लें। यह बात बाकि शिष्यों को अच्छी नहीं लगती। उनके मन में यह प्रश्न उठता कि ऋषि की नज़रों में तो समानता होनी चाहिए, फिर हमारे गुरूजी राजा को अधिक भाव क्यों देते हैं। याज्ञवल्क्य जी ने उनके इस प्रश्न को जान लिया और अगले ही दिन एक लीला की। जब वेह प्रवचन कर रहे थे तो एक लड़का भागता हुआ आया, कि मिथिला पूरी में आग लगी है और आश्रम की तरफ बढ़ रही है। यह सुनते ही सारे शिष्य इधर उधर अपने आप को सुरक्षित करने के लिए दौड़ने लगे पर राजा जनक वहीँ बैठे रहे। ऋषि ने उन्हें भी सुरक्षित स्थान पे जाने को कहा, पर उन्होंने कह दिया कि जब एक दिन इस शरीर ने ही जल के ख़ाक होना है तो इसे क्यों सुरक्षित करें। आत्मा अमर है, इसलिए कोई चिंता नहीं। वेह अग्नि को सच्ची नहीं थी पर महाराज जनक तत्व-ज्ञान के सच्चे अधिकारी ज़रूर थे। बन्धुओ, जिस ह्रदय में एस भाव आजाये, तो समझिये उसने तत्व को समझ लिया। 

मै पुनः यह बात दोहरा रहा हूँ कि हम न तो इस ज्ञान को कहने के अधिकारी हैं और न ही सुनने के, फिर भी यह प्रभु के चरणों का प्रेम ही है जो हम इसे लिख-पढ़ रहे हैं। यदि बाह्य दृष्टि से देखा जाए तो शरीर हर प्रकार से आत्मा से बड़ा है क्योंकि श्रीमद भगवद्गीता में भगवान् ने अर्जुन को कहा है कि एक मानव शरीर पर जो बाल होता है, उस बाल की नोक के यदि सौ हिस्से किये जाएँ, तो वह आत्मा के कण के बराबर होंगे। परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से यदि देखें तो वही आत्मा रुपी ज्योत सबके ह्रदय में प्रकाशमान है और सबके जीवन का मूल कारण है। यदि शरीर के सारे अंग बिलकुल ठीक हों पर केवल आत्मा शरीर से अलग हो जाए, तो शरीर मृत है। उसका कोई मोल नहीं है। केवल आत्मा के न होने से शरीर इतना अपवित्र हो जाता है कि कोई उसे छु ले तो नहाना पड़ता है। श्मशान घाट पे जाके उसे जला दिया जाता है। ये आत्मा की ही ज्योत है जिसके बल पे यह दिल धड़कता है, दिमाग चलता है, सांस गतिशील होती है। आत्मा नहीं तो कुछ नहीं। 

परन्तु इतना होने पर भी शरीर की अहमियत को ठुकराया नहीं जा सकता। जैसे एक अनंत समुद्र को पार करने के लिए नौका की आवश्यकता होती है उसी प्रकार इस भवसागर को पार करने के लिए भी शरीर रुपी नाव आवश्यक है। यह शरीर ही हमें परमात्मा श्री बांके बिहारी के दर्शन करवाने में समर्थ है। बिना शरीर के हम भजन नहीं कर सकते। यदि कोई वक्त आत्मा रूप में कथा सुनाने आये, तो सच बोलियेगा आप में से कौन जायेगा। और सुनने के लिए यदि आत्मा बैठी हो तो क्या कोई सुनाने आएगा? राम कथा के प्रवीण वाचक, पूज्यपाद संत श्री मोरारी बापू से मैंने सुना है, राम चरित मानस का कथन है, बिना शरीर के कोई भक्त नहीं बन सकता। और केवल भक्तों को भगवान् से मिलने के लिए शरीर नहीं चाहिए, बल्कि भगवान् का भी यदि अपने भक्तों से मिलने का मन करे तो उन्हें भी शरीर धारण करके साकार रूप लेना ही पड़ता है। हर ग्रन्थ में जहाँ भी भगवान् के अवतार के कारन बताये जाते हैं, मुख्य कारण भक्त ही होते हैं। जब भगवान् का अपना नाम लेने का मन हुआ, तब भी उन्हें चैतन्य महाप्रभु का शरीर ही लेना पड़ा। 

अब आप कहेंगे कि मैंने तो शरीर और आत्मा दोनों को ही श्रेष्ट प्रमाणित कर दिया, सवाल का उत्तर कहाँ गया। तो मै बताना चाहूँगा कि ये चर्चा अंत-हीन है। इस विषय पर अनंत समय तक बोल सुना जा सकता है, पर तत्व-ज्ञान का सार बस इतना है कि आत्मा और शरीर दोनों ही महत्वपूर्ण है। और तत्व-ज्ञान हमें आत्मा और शरीर का बोध करता भी नहीं है, इस ज्ञान में यह चर्चा नहीं की गयी कि आत्मा और शरीर में कौन बड़ा है। तत्व ज्ञान कहता है कि बेशक शरीर महत्वपूर्ण है, पर ये नश्वर है। इसलिए इसके प्रति आसक्ति मत रखो, यही खुश रहने का एक मात्र सूत्र है। और बिना इस बोध के भगवान् का मिल पाना असंभव है। 

यहाँ एक प्रश्न और आता है कि यदि बिना तत्व ज्ञान के परमात्म तत्व की प्राप्ति असंभव है, तो गोपियों को कृष्णा कैसे मिले। उन्हें तो कोई ज्ञान नहीं था और जब उद्धव उन्हें ज्ञान देने आये तो उन्होंने उसे स्वीकार भी नहीं किया। तो मई आपको बता दूं, गोपियों को तत्व ज्ञान की आवश्यकता ही नहीं है। उन्हें तो अपने शरीर का होश ही नहीं था, उसके प्रति आसक्ति कहाँ से आती। फिर भी गोपियों के इस विषय पर किसी और लेख में विस्तृत रूप से बात करूँगा। यहाँ तो केवल मैंने एक छोटा सा दुस्साहस किया है तत्व-ज्ञान पर बात करने का। यदि आप इसके बारे में पढना चाहे तो यह ज्ञान सूर्य देव विवस्वान को भगवान् ने दिया था, भगवान् ने गीता में अर्जुन को दिया है और भगवत महापुराण के ग्यारहवे स्कन्ध में भी भगवान् ने उद्धव से इस ज्ञान पर वार्तालाप किया है। 

मई जानता हूँ, मेरे विचारों से आप में से बहुत लोग सहमत नहीं होंगे, यदि आप अपने विचार मुझे बताये तो मई आपका बहुत आभारी रहूँगा। और मेरी आपसे हाथ जोड़ के प्रार्थना है कृपया अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर व्यक्त करें और यदि मेरी किसी बात से किसी की भावनाओ को ठेस पहुंची हो तो मई माफ़ी मांगता हूँ। 

धन्यवाद !
श्री राधे !

11 comments:

  1. बहुत मन है एक बार पूरी भागवत कथा सुनने का
    कैसे संभव हो पाता है देखते हैं...

    ReplyDelete
    Replies
    1. Shri Radhe,

      Aap ek baar bhagwat sunne ko keh rahe hai...pujya gurudev ne to itna sukabh kardiya ki aap rooz unke shri mukh se bhagwat ras paan kar sakte hai...Adhtym channel ke madhyam se.

      Par itna zaroor hai ki bhagwat sunne ka adhikari wahi hai jise shri radhe krishn se prem ho aur guru par vishwas.

      Shri Radhe

      Delete
    2. This comment has been removed by the author.

      Delete
  2. radhe radhe bahut acha varnan kiya h anshu ji .theek kaha apne ki atma agar shreshth h to shareer ki bhi importance apni jagah h.mujhe dhang ke example dene to nahi ate lekin mujhe lagta h ki atma aur shareer ka sambandh vaisa h jaisa bihari ji aur sridham vrindavan ka jaise ye dono ek dusre ke bina adhure h aur dono me se kiski mahima adhik h ye btana bhi mushkil h waisa hi sambhand atma aur shareer ka bhi h. shree radhe.

    ReplyDelete
  3. Radhey Radhey Madhura ji,

    Bilkul sahi udharan diya hai apne. Bahut uttam vichar hai apke.

    Radhey ju Kripa Kare

    ReplyDelete
  4. respected admin......
    please upload those lines which gurudev generally says in "NAAM SANKIRTAN" in the starting of the katha....i know the last line only ....it is..."bharke drig patra mein netra ka jal..,,nit aarti bhavya utara karun....."please upload those lines.......shri radhey

    ReplyDelete
    Replies
    1. Maan Me Basi Bus chaa yahi,
      Peeya naam Tumhara Uchara Karu,
      Bithla Ke Tumhe man mandir me,MANMOHAN Rup Nihara Karu,
      bharke drig patra mein Prem ka jal,
      Pad pankaj Nath Pakhara Karu,
      Banu Prem Pujaru Tumahra Prebhu,
      Nitya arti Bhavya Utara Karu..

      Delete
  5. Thanks for sharing this useful information. Great work!

    Free mp3 downloads

    ReplyDelete
  6. Radhe Radhe Gurudev....

    aapne bot ache s smjhaya h...

    aj apke mukh s prabhu k naam ko sun sun k prem hua h unke charno me.....

    Radhe Radhe..

    ReplyDelete
  7. Radhye Radhye....guru dev

    ReplyDelete
  8. @gauravkrishnag swami ji mane apki eek katha suni thi jisme apna ek ladke ke bare me batya ki vo ladki dekhane jata hai ladki se puchta hai ki vo shadi ke baad apne mata pia ke sath rahega kihe tu mujde alag ghar to nahi manage gi............. or phir apne ek bhajan sunya tha mujhe us bhjan ke bare me jaaanana hai

    ReplyDelete