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Friday, January 27, 2012

बसंत पंचमी


या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता |
या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना ||
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता |
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष्य जाड्यापहा ||


अर्थार्थ जो कुंद फूल, चंद्रमा और वर्फ के हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें

एक व्यक्ति के जीवन में अनेक अवस्थाये आती है. कभी वो बाल्यावस्था में होता है, फ़िर युवा और अंत में वृद्धावस्था भी आती है. परन्तु यदि कोई अवस्था सबसे मधुर और सबसे सच्ची है तो वो है बाल्यावस्था. क्यूंकि बाल्यावस्था में किसी प्रकार का राग द्वेष हमारे ह्रदय में नहीं होता. एक और महत्वपूर्ण बात इस बाल्यकाल में होती है और वो है विद्यार्थी जीवन. हमारे अंदर कुछ सीखने की चाह होती है और हम सबसे महत्वपूर्ण धन, अर्थार्थ विद्या को पाने की लालसा रखते हैं. मानव जीवन का सबसे बड़ा अलंकार है विद्या. आप स्वर्ण रजत के आभूषणों से क्यों न लदे हुए हो, परन्तु यदि आप निरक्षर है तो समाज में आपका मान प्रतिष्टा कभी नहीं हो सकती. यदि सभा में हमारी इज्ज़त होती है तो केवल हमारी विद्या के बल पर. यदि ऐसा न होता तो तुलसीदास और सूरदास जी का इतना नाम आज न होता. गुरुदेव ने बताया था कि चैतन्य महाप्रभु ने तो यहाँ तक कह दिया था कि "विद्या वधु जीवनम". जिस प्रकार एक शादी शुदा स्त्री यदि श्रृंगार करती है तो केवल अपने सुहाग के लिए जिसके कारण वो सधवा है. यदि उसके पति कि मृत्यु हो जाये तो वो सधवा नहीं रह जाती अपितु विधवा हो जाती है. एक विधवा चाहे कितनी ही अधिक रूपवती क्यों न हो, परन्तु वो सुंदर नहीं दिखेगी. इसी प्रकार से विद्या भी जीवन का अलंकार है. बिना विद्या के हमारी जिंदगी सधवा नहीं विधवा है और वो सुंदर नहीं लग सकती.

हम सब जानते है कि विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती है. वो सभी वेदों और शास्त्रों कि ज्ञाता है और स्वयं ब्रह्मा जी की पत्नी भी हैं. इस संसार में जितनी भी विद्या है और जितना भी संगीत है वो सब माँ सरस्वती की कृपा से है. माँ सरस्वती का एक नाम शारदा भी है. हमारे गुरुजन निरंतर प्रयास करते हैं कि हमारा मिलन माँ सरस्वती से हो और हमें विद्या कि प्राप्ति हो. माघ शुक्ल पंचमी तिथि को बसंत पंचमी कहा जाता है. इस दिन माँ शारदे कि पूजा का विधान है और ऐसी मान्यता है कि जो शिक्षार्थी सच्चे दिल से और भव से माँ का आह्वाहन करते हैं, उनके ऊपर माँ अपनी कृपा ज़रूर करती है. ये किसी के मुह से मैंने नहीं सुना ये मेरा स्वयं का अनुभव है कि माँ कृपा करती है अपने भक्तो पर. आप सबसे मेरा अनुरोध है कि माँ को प्रसन्न करे और उनकी आराधना से अपना जीवन सफल बनाये. 

बसंत पंचमी बड़ा हर्षोल्लास का पर्व है. ऋतुराज बसंत का आगमन आज से हो जाता है और सब जानते है कि जितनी मस्ती और जितना आनंद बसंत ऋतू में होता है उतना और किसी ऋतू में नहीं होता. हमारे वृन्दावन में हो आज से होली के रसिया की होली भी शुरू हो जाती है. आज से जो ब्रज में जायेगा उसे तो बिहारी जी सूखा वापिस आने  नहीं देंगे सबको अपने रंग में सराबोर कर ही देते हैं. बसंत पंचमी वाले दिन कि शयन आरती में पहली बार ठाकुर जी के सामने गुलाल उडाया जाता है. 

आप सब को हमारी ओर से बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामना. माँ शारदा मेरे बांके बिहारी और मेरी किशोरी जी आप सब पर कृपा करे और विद्या का धन आप सब को अपने जीवन में प्राप्त हो. 

या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः 


~~~~~ जय बिहारी जी की ~~~~~

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