ब्रजराज तेरी याद भुलाई नहीं जाती
ये प्रेम कहानी है, सुने नहीं जाती
तुम मेरे मसीहा हो, करो दर्द का दावा
उठी टीस कलेजे में, दबाई नहीं जाती
मुझे इतनी पिला दे, के फिर होश ही न आये
या साफ़ कहदे की पिलाई नहीं जाती
मै ढूंढ रहीं हूँ मगर, तेरा दर नहीं मिलता
दर दर की ठोकरें हैं, खाई नहीं जाती
वृन्दावन की गोपियों से लेकर दर्द दीवानी मीरा तक, इस सांवरी सलोनी सूरत के अनेक दीवाने और आशिक हुए हैं और हर प्रेमी का भाव इतना विलक्षण होता है कि चर्चा करते करते ज़िन्दगी छोटी लगने लगती है। हर प्रेमी अपने अलग ढंग से अपने ठाकुर को रिझाता है और अपने अनोखे भाव ठाकुर के चरणों में समर्पित करता है। कोई सकाम भक्ति करता है तो कोई निष्काम भक्ति करता है। कोई उनसे कुछ नहीं चाहता तो कोई उनसे सब कुछ चाहता है। हर भक्त उनके अलग अलग रूप की पूजा करता है, कोई बनके बिहारी को मानता है, कोई राधा रमण को, कोई राधा वल्लभ को, कोई द्वारिकाधीश को तो कोई श्री नाथ जी को। परन्तु कन्हैया के हर प्रेमी के ह्रदय में एक समानता होती है, उनका हर भक्त उनके साथ रास करना चाहता है। ये इच्छा हर साधक के मन में होती है की प्रभु उसे भी अपने उस दिव्य महारास का दर्शन कराएं। बंधुओ यह महारास लीला कोई साधारण लीला नहीं है। मुझे तो उन पर दया आती है जो इस अद्भुत लीला को संदेह की निगाह से देखते है। बड़े बड़े योगी और स्वयं योगेश्वर भगवन शिव अपने ध्यान में इसी महारास का चिंतन करते हैं और उन्हें भी इसके दर्शन नहीं हो पाते। श्रीमद्भागवत जैसे परम विशाल ग्रन्थ में भी महारास का विस्तृत वर्णन नहीं मिलता। श्री शुकदेव जी महाराज भी इस लीला के रहस्य को रजा परीक्षित से छुपा गए क्यूंकि इस महारास का वर्णन नहीं, इसका तो केवल दर्शन हो सकता है। इसका वर्णन कौन करेगा? और इसका दर्शन भी और कोई नहीं स्वयं किशोरी जी अपने कृपा पात्रों को कराती है। जैसा की पूज्य गुरुदेव बताते हैं, महारास तक पहुँचने की तीन सीढियां हैं, सबसे पहले तो हमें संसार की मोह-माया से विरक्त होके श्री धाम वृन्दावन में वास करना होता है, उसके बाद किसी रसिक आचार्य की शरण में स्वामी जी का दास बनना होता है और जब हमारी भक्ति परिपक्व स्तिथि पे पहुच जाएगी तो राधे जू कृपा करेंगी और हमें रास का दर्शन होगा।
ये महारास की लीला भगवन ने द्वापर युग में रचाई थी और आज से साढ़े पांच हज़ार वर्ष पूर्व इस लीला का विश्राम भी हो गया था, परन्तु आज से 500 वर्ष पूर्व जब अनन्य रसिक नृपति स्वामी श्री हरिदास जी महराज जब वृन्दावन पधारे तो निधिवन के कुंजो में उन्होंने पुनः इस महारास की दिव्या लीला का प्रारंभ करवाया और यह परंपरा आज तक निधिवन में प्रतिदिन होती है, हर रात वहां रास होता है। और इस निकुंज की लीला का वर्णन स्वामी जी ने अपने पदों में किया जिनका संग्रह केलिमाल में हमें प्राप्त होता है। स्वामी जी ने रास में कितना सुंदर लिखा है:
सुन धुन मुरली वन बाजे हरी रास रचो
कुञ्ज कुञ्ज द्रुम बेली प्रफुल्लित, मंडल कंचन मणिन खचो
निरखत जुगल किशोर जुबती जन, मन मेरे राग केदारो मचो
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा, नीके री आज प्यारो लाल नचो
इस महारास का एक अटूट अंग गोपी गीत भी है। गोपी गीत के बारे में तो किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। भागवत पुराण के प्राण बसते हैं गोपी गीत में। और गोपी गीत का कारन भी हमें ज्ञात ही है। जब भगवन गोपियों के अहंकार को दूर करने के लिए उनके सामने से अदृश्य हुए थे तो गोपियों ने सुर में रुदन किया था और इस गोपी गीत को गया था। गोपियाँ यमुना से पूछती थी, कभी निधिवन से पूछती थी, कभी तुलसी से पूछती थी और जब भगवान् नहीं मिले तो गोपियों ने ढूंढना बंद कर दिया और फिर वो प्रभु के प्रेम में खो गयी। वास्तविकता में भी इस दुनिया के लोग ढूँढने से मिलते होंगे, पर मेरे बनके बिहारी तो खोने से ही मिलते है। "किसी से उनकी मंजिल का पता पाया नहीं जाता, जहाँ वो हैं फरिश्तों से वहां जाया नहीं जाता". किसी भक्त ने गोपियों के भावों को बड़े सुंदर शब्द में लिखा जो आपको बताना चाहता हूँ:
सबब रूठने का बता कर तो जाते
हमें भी ज़रा आजमाकर तो जाते
फिज़ाओं से पुछा कई बार तुमको
झलक बस ज़रा सी दिखा कर तो जाते
मुस्कुरा रही थी चमन में बहारें
मुहब्बत के नगमे सुना कर तो जाते
दिया दर्द-इ-दिल कोई शिकवा नहीं है
पता तुम अपना बता कर तो जाते
अगर बेसबब थी हमारी शिकायत
ज़रा आँख हमसे मिलाकर तो जाते
ज़रा और रुकते तो होती इनायत
जनाज़ा हमारा उठा कर तो जाते
गोपी और महारास के भावों का वर्णन करना तो इस लेख की सीमाओं से परे है और ये तुच्छ बुद्धि भी इस लायक नहीं है की निकुंज लीला के एक कण की भी चर्चा कर सके। मैंने तो केवल एक छोटा सा प्रयास किया है की आपको रास के रस से अवगत करा सकूँ। यह महारास लीला अश्विन पूर्णिमा के दिन ही हुई थी जिसे हम शरद पूर्णिमा के रूप में जानते हैं। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 29 अक्टूबर को मनाई जाएगी और वृन्दावन के भक्ति मंदिर में 'साध्वी' पूर्णिमा जी (पूनम दीदी) की भाव पूर्ण भजन संध्या का विशाल आयोजन किया गया है। आप सब भक्त वहां सादर आमंत्रित हैं। शरद पूर्णिमा के दिन तो वृन्दावन के दर्शनों का अति विशेष महत्व है। अपने देखा होगा की ठाकुर श्री बांके बिहारी जी कभी अपने हाथ में मुरली नहीं रखते, परन्तु शरद पूर्णिमा के संध्या कालीन दर्शनों में बिहारी जी के हाथ में मुरली, कटी काछनी और सर पर मोर-मुकुट का श्रृंगार होता है। बिहारी जी अपने कक्ष से बहार भक्तों के समीप आ जाते है। मंदिर के प्रांगन को एक वन का रूप दिया जाता है जिसमे एक चांदी के घरोंदे में प्रभु आसीन होते हैं। सांवली सूरत पे पूर्ण श्वेत पोशाक इस प्रकार सुशोभित होती है जैसे अँधेरे आकाश में चन्द्रमा। आ के दिन तो चाँद के भी भाग्य उदय हो जाते हैं क्यूंकि आज तो मंदिर उस समय तक खुला रहता है जब तक चाँद बिहारी जी के चरणों को स्पर्श ना कर ले। आप सब जानते होंगे की बिहारी जी पश्चिम दिशा में पूर्व की तरफ मुख करके खड़े हुए हैं और शरद पूर्णिमा पे चाँद भी पूर्व से ही उदय होता है। इसलिए आज मंदिर के सामने वाली खिड़की और रोशनदान खोल दिए जाते हैं जिससे चाँद दर्शन पा सके।
बिहारी जी के श्रृंगार यूँ तो अनंत हैं, पर फिर भी मर्यादाओं का पालन करते हुए मै यहीं अपने शब्दों को विराम देता हूँ और यही प्रार्थना करता हूँ की हमें प्रभु के चरणों का नुराग इसी प्रकार बना रहे और हमें भी वो मुरली वाला एक दिन गोपी बनाकर अपने साथ रास में ले चले। इसी आशा को मन में रखते हुए मई आप सबको हमारे परिवार की तरफ से शरद पूर्णिमा की बहुत बहुत शुभकामना देता हूँ और गुरु चरणों में प्रणाम करता हूँ।
~~~~~~~ श्री राधे ~~~~~~
whaaa anshu ji anand agaya padh... bahut adhbudh varnana sach rom rom khil gaya..
ReplyDeleteTumhe dekhkar aj ji chahta hai tumhe pran pritam ankho mein basaien agar asmaan tak rasai ho apni tumhe aj taron ki mala pehnaye tere paanv dhoye hum phoolo ke ras se tumhe aj nehlayein hum chandni se badi der se did ke multzir hain jo tum muskurao to hum muskuraye. hpy sharad poornima.shri radhe.
ReplyDeleteGurudev ji ki live katha kab ayegi kripaya batane ki kripa kare
ReplyDeleteGurudev ji ki live katha kab ayegi kripaya batane ki kripa kare
ReplyDeleteGurudev ji ki live katha kab ayegi kripaya batane ki kripa kare
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ReplyDeleteGurudev ji ki live katha kab ayegi kripaya batane ki kripa kare
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ReplyDeleteRadhe Radhe Lovely Ji..
Deletei Send ur detaiol on Our fb Page..
Kirpa hai ap pe radha rani ki.. kal icha kari or Puri Kar di RADHA RANI ne..
Shree Radhe Radhe..
Gurudev ji ki live katha kab ayegi kripaya batane ki kripa kare
ReplyDeleteजय जय श्री कुंजबिहारी ! जय जय श्री हरिदास ! आपके मुखारविंद से श्री मद्भभागवत कथा सुनने का बहुत मन करता है आपकी कथा टाटा स्काई पर क्यों नहीं आती है, हमारे यंहा सिर्फ टाटा स्काई ही है. टाटा स्काई पर आप अपना चैनल जोड़ने की कृपा करें जिससे आपकी कथा से वंचित अन्य भक्त भी लाभ प्राप्त कर सकें. जय श्री राधे !
ReplyDeleteजय जय श्री कुंजबिहारी ! जय जय श्री हरिदास ! आपके मुखारविंद से श्री मद्भभागवत कथा सुनने का बहुत मन करता है आपकी कथा टाटा स्काई पर क्यों नहीं आती है, हमारे यंहा सिर्फ टाटा स्काई ही है. टाटा स्काई पर आप अपना चैनल जोड़ने की कृपा करें जिससे आपकी कथा से वंचित अन्य भक्त भी लाभ प्राप्त कर सकें. जय श्री राधे !
ReplyDeleteRadhye sada mujh par rehmat kI Nazar rakhna mai Daas tumhara hUN itni to khabar rakhna kahi dub na jaau mai mera haath pakda rakhna.........
ReplyDeleteRadhye sada mujh par rehmat kI nazar rakhna...mai daas tumhara hun itni to khabar rakhna....
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