आप सब लोग समझ ही गए होंगे कि आज के लेख की पृष्ठभूमि क्या है. आज एक बात आप सब बंधुओ को दिल से बताना चाहता हूँ. बहुत दिनों से दिल में एक अरमान है और एक उत्सुकता है कि आप लोगों को एक लीला का दर्शन अपने लेख के माध्यम से करवाऊं जो मुझे विश्वास है कि अधिकतर भक्तों ने नहीं सुनी होगी. परन्तु धन्य है ये हमारे भारत की भूमि जहाँ एक के बाद एक पर्व और त्यौहार आते ही रहते हैं और मुझे आपको इन सबके विषय में कुछ बताने का दिल करता है. कई बार गहन चिंतन में डूबता हूँ तो ये ख्याल आते हैं कि अगर इन त्यौहारों के रंग हमारे जीवन में न हो, तो यह जिंदगी जो पहले से ही इतनी चिंतामग्न रहती है और भी नीरस हो जायेगी और इसे संभालना एक बोझ हो जायेगा. इन त्यौहारों के माध्यम से हमारे जीवन में हर्षोल्लास और एक सकारात्मक उर्जा का प्रसार होता है जो हमारी मुश्किलों मो कम तो नहीं करती परन्तु उनका सामना करने कि शक्ति हमें प्रदान करती है. जब जिंदगी की परेशानियों से हाम हारने लगते हैं तो यह पर्व ही हैं जो हमें कहते हैं कि क्या हुआ अगर मुसीबतें हैं मत भूल कि यहाँ मज़ा भी बड़ा आता है. और जब इन सतरंगी त्यौहारों के साथ अध्यात्म का आठवां रंग मिल जाए तो आनंद की सीमा नहीं रहती और वैसे भी बंधुओ ये तो हमारे पूर्वजों की मान्यताएं हैं कि किसी तिथि को हम विशेष रूप से मनाने लगते हैं वर्ना तो जिस दिन इश्वर का आगमन हमारे जीवन में हो जाये वो हर दिन होली और हर रात दिवाली है. इसलिए संत कितना सुंदर कहते हैं
तुम्हारा आना फाल्गुन की बहारों जैसा है
तुम्हारा आना सावन की फुहारों जैसा है
ये शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तिथियाँ क्या गिनना
तुम्हारी तो याद का आना भी त्यौहारों जैसा है
और धन्य हैं हमारे त्यौहार जो केवल इश्वर की याद नहीं दिलाते अपितु भगवान को ही हमारे आंगन में उतार लातें हैं और धन्य हैं हम जो हमें इस पवित्र भूमि भारत में जन्म लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ. वैसे तो पितृ-पक्ष के साथ त्यौहारों का मौसम दस्तक दे ही चुका है, पर जो पर्व हम श्राद्ध विसर्जन के ठीक अगले दिन शुरू करेंगे उसका नाम है "नवरात्र".
महामाया, महादायालू, महाशक्ति, सुख्करनी, दुख्हरनी, परम ममतामयी अष्टभुजी भवानी माँ शेरोवाली को समर्पित यह नवरात्रि पूरे भारत में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. चाहे वैष्णव हो, शैव हो, इस पर्व को प्रत्येक संप्रदाय के अनुयायी बड़ी श्रद्धा और भक्तिभाव से मानते हैं क्यूंकि शक्ति कि ज़रूरत तो हर किसी को पड़ती है. यदि हम राधे जू कि भी भक्ति करते हैं और उसकी शुरुआत भी माँ जगदम्बा से ही प्रारंभ होती है. हमारे शास्त्रों में ४ बीज मन्त्रों का व्याख्यान आया है -- "एं, भ्रीम्, श्रीं और क्लीम्". ये चारों बीज मंत्र जब तक कोई साधक सिद्ध नहीं कर लेता उसे भक्ति का अनुभव होना मुश्किल है. पहला बीज मंत्र है 'एं' जिसकी अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा हैं. माँ दुर्गा ही शक्तिस्वरूपा हैं. और जैसा मै पहले भी लिख चुका हूँ कि इस संसार में हम कोई भी कर्म करें भले ही वेह भक्ति से सम्बंधित न हो तो भी हमें शक्ति कि आवश्यकता होती है. यहाँ तक कि चोर को चोरी करने के लिए भी माँ दुर्गा की कृपा चाहिए. और यदि इस शक्ति को इस कृपा को हम भक्ति और अध्यात्म में इस्तमाल करें तो बात बहुत आगे बढ़ जाती है. हमें बैरंग्ताओं में भी शक्ति चाहिए. हम यदि माँ दुर्गा के विग्रह की तरफ नज़र डालें तो देखते हैं कि माँ कि आठ भुजाएं हैं जिनमे से एक हाथ से माँ आशीर्वाद दे रही है और शेष सात भुजाओं में माँ ने शस्त्र धारण कर रखे हैं. ये शस्त्र हमें डराने के लिए बल्कि असुरी वृतियों के संघार के लिए हैं. जब हम भक्ति के पथ पर अग्रसर होते है तो हमारे अंदर अनेक बुराइयां और कल्मष होते हैं. जब हम माँ दुर्गा की शरण ग्रहण करते हैं तो धीरे धीरे माँ अपनी ममता और करुना से इन सबका दमन कर देती हैं और हमें इस लायक बना देती हैं कि परमात्म तत्व की प्राप्ति हमें हो सके. इसलिए कोई भी भक्त माँ दुर्गा कि ज़रूरत को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता, जब तक माँ कृपा न करे बात आगे बढ़ ही नहीं सकती. इसके बाद सगला बीज मंत्र है 'भ्रीम्' अर्थार्थ हृष्टि, पुष्टि और तुष्टि. हम स्वस्थ रहे क्यूंकि बिना उत्तम स्वास्थ्य के प्रभु चरणों का अनुराग नहीं हो सकता. फ़िर है 'श्रीं' जिसकी अधिष्ठात्री हैं माँ लक्ष्मी जो धन और ऐश्वर्य की देवी हैं. भक्ति मार्ग में भी हमें धन की उपयुक्त मात्रा की आवश्यकता होती है जो हमें माँ लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त होता है और जब यह सब हो जाता है तब आता है 'क्लीम्' अर्थार्थ करुणा और प्रेम जिसकी अधिष्ठात्री हमारी बरसाने वारी राधा प्यारी है.
उन्ही माँ दुर्गा को समर्पित यह नवरात्रे वर्ष में २ बार आते हैं और साथ मैया जी को हमारे आंगन में ले आते हैं. इस वर्ष शारदीय नवरात्रि मंगलवार, १६ अक्टूबर से प्रारंभ हो रहे हैं और बुधवार २४ अक्टूबर को दशहरा मनाया जायेगा. देश के अलग अलग प्रान्तों में इस पर्व को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है. बंगाल में दुर्गा पूजा के माध्यम से, गुजरात से डांडिया आदि नृत्यों के माध्यम से, और अनेक जगह प्रभु श्री राम की दिव्या लीलाओं का मंचन किया जाता है. तरीका चाहे जो भी हो, सबका उद्देश्य तो केवल आनंद की प्राप्ति होता है. हमारे देश में वैसे तो माँ वैष्णो के अनेकानेक भक्त हुए हैं जिनकी कथाएँ हम सब सुनते ही है, इनमे प्रमुख थे श्री ध्यानु जी महाराज जिनके समक्ष स्वयं अकबर भी नतमस्तक हो गया था और इस बात का प्रत्याख प्रमाण वेह छत्र है जो आज भी माँ ज्वाला के मंदिर में रखा हुआ है. परन्तु एक ऐसे शख्स हमारे बीच में आज भी उपस्थित हैं जिनके सिर पर माँ ने अपनी कृपा और करुणा का वरद हस्त रखा हुआ है. जिनकी आवाज़ हमारे घरों में, हमारे दिलों में हमेशा गूंजती रहती है, जिन्होंने अनेक भक्तों को माँ से जोड़ा है और संगीत के माध्यम से जो कई वर्षों से माँ के नाम का प्रचार निरंतर कर रहे हैं, जी हाँ, मै बात कर रहा हूँ, माँ के लाडले परम आदरणीय श्री नरेन्द्र चंचल जी की जिनकी भेंट चन्द्रमा की चांदनी से भी अधिक शीतल और सुखदायी होती हैं. मै यहाँ उनकी कुछ भेंट आप सबको उपलब्ध करा रहा हूँ और आप इन्टरनेट पर इनके अनगिनत भजनों को सुन सकते हैं.
अंत में इसी प्रार्थना के साथ अपनी कलम को विश्राम देता हूँ कि माता राणी आप सब पे अपनी कृपा बरसाती रहे और यह नवरात्रि आपके लिए मंगलमय हों.
श्री राधे ~~~~~ जय माता दी ~~~~~ श्री राधे
राधे राधे
ReplyDeleteबहुत बढिया
श्री राधे राधे
ReplyDeleteसुंदर श्री कृष्णा भजन
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