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Wednesday, August 8, 2012

श्री कृष्ण जन्माष्टमी


हर शाम चरागों से जला रखी है
बात ये दुनिया से छुपा रखी है
न जाने किस गली से आजाओ तुम
इसलिए हर गली फूलों से सजा रखी है



जब इस पृथ्वी पर पाप और अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया तो माँ धरती ने सभी देवताओं के साथ मिलकर नारायण के समक्ष अपनी व्यथा गाई और श्री हरी विष्णु ने उन सबको यह आश्वासन दिया कि वो बहुत जल्द कृष्ण अवतार धारण करके पृथ्वी पर आएंगे. सुंदर भाद्रपद का महीना और कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, अभिजित मुहूर्त और रोहिणी नक्षत्र का तीसरा चरण, बादलों की गडगडाहट और मंद मंद पवन मानो प्रभु का स्वागत कर रहे हों और सभी देवताओं ने प्रभु की गर्भ स्तुति की जब उन्होंने मथुरा में, कंस के कारागार में, माँ देवकी के गर्भ से चतुर्भुज रूप से अवतार लिया. यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रभु ने अवतार लिया, उन्होंने जन्म नहीं लिया क्यूंकि प्रभु तो अजर अमर हैं. उन्होंने गीता जी में अर्जुन को उपदेश देते समय यह बताया है कि वो न तो जन्म लेते हैं और न ही मरते है, वो तो हर पल, हर क्षण, इस प्रकृति और इस ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त हैं. पुष्पों में सुगंध के माध्यम से, हवा में शीतलता के माध्यम से, धूप में तपिश के माध्यम से, चाँद में चांदनी के माध्यम से, सूर्य में प्रकाश के माध्यम से, खेतों में लह्लाहट के माध्यम से और सभी जीवों के आत्मा के माध्यम से प्रभु विराजते हैं. जैसा कि श्री राम चरित मानस में शिव जी बताते हैं, 

हरी व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट भये मै जाना

तो सवाल यह सामने आता है कि यदि प्रभु सर्व व्यापक हैं तो उन्हें तरह तरह के शरीर धारण करने की क्या आवश्यकता है. कई लोग इस बात का उत्तर ये देते हैं कि प्रभु असुरों के विनाश के लिए आते हैं. परन्तु यह बात सत्य नहीं है बंधुओ. क्यूंकि हमारे प्रभु तो इतने महान हैं कि यदि उनकी एक भृकुटी टेड़ी हो जाए तो काल स्वयं थर थर कांपने लगता है तो क्या वो प्रभु अपने लोक में बैठे बैठे मुठ्ठी भर असुरों का विनाश नहीं कर सकते ? इस सवाल का असली उत्तर भी भोले नाथ ने उपर्लिखित चौपाई में ही दिया है. शिव जी कहते हैं कि 'प्रेम ते प्रगट भये मै जाना'. अर्थार्थ प्रभु को प्रेम से जहाँ पुकारा जाये वो वहीँ अपने भक्तों के सामने प्रकट हो जाते हैं. इसलिए अपने भक्तों के साथ सुंदर सुंदर लीला करने के लिए, अपने बाल रूप का आनंद देने के लिए, अपने प्रेमियों का प्यार पाने के लिए ही प्रभु वृन्दावन में पधारे थे. एक प्रसंग मुझे स्मरण हुआ, इस लेख की सीमाओ को तोड़ के तो मै उस प्रसंग का वर्णन नहीं कर सकता, परन्तु फ़िर भी सांकेतिक तौर पे मै उस प्रसंग कि चर्चा करना चाहता हूँ. एक संत निर्गुण के बहुत बड़े उपासक थे. हमेशा कहा करते थे "घट में गंगा, घट में यमुना", क्या फायदा है मूर्ति कि पूजा करके या सगुण की उपासना करके, प्रभु सब जगह हैं इसलिए भगवान को एक निराकार तेज मानो. जब एक गाँव के लोगों ने यह बात सुनी तो बहुत बुरा लगा कि हमें ठाकुर जी के विग्रह को देखने से रोकता है यह संत. तो एक गाँव के व्यक्ति ने धोके से उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया और जब संत चिल्लाने लगे प्यास से, तो उस व्यक्ति ने कहा कि ऊपर दो घड़े रखे हैं, उन्ही में गंगा यमुना है, अपनी प्यास बुझालो. तो संत ने कहा कि हाँ वो सत्य है पर उससे प्यास नहीं बुझती, तो उस व्यक्ति ने भी कह दिया कि हम भी जानते हैं कि वो निर्गुण निराकार है, पर जब तक वो सगुण बनकर हमारे सामने नहीं आता, तो हम भक्तों की प्यास नहीं बुझती. इसलिए बंधुओ, भगवान तो भक्तों की प्यास बुझाने के लिए आते हैं मोर-मुकुट धारण करके.



तो अब सब भक्तों को अपनी कमर कास लेनी चाहिए. नहीं नहीं, किसी जंग या लड़ाई की तैयारी नहीं करनी है, पर जन्माष्टमी दस्तक दे चुकी है न, इसलिए तैयार तो होना पड़ेगा, उनका जन्मदिन है, कोई छोटी बात तो है नहीं. इसलिए आइये हम यह जाने कि यह पावन त्यौहार प्रभु की भूमि श्री धाम वृन्दावन में कैसे मनाया जाता है. वैसे तो इस वर्ष बड़ी सुंदर भागवत कथा चल ही रही है, पर श्री बांके बिहारी जी के साथ इस त्यौहार को कैसे मनाया जाता है आइये पढ़ें. 

एक बहुत ही अलग ढंग से यह पर्व वृन्दावन में मनाया जाता है और पूरे वर्ष में केवल इस दिन ठाकुर जी की मंगला आरती की जाती है. पूरे दिन साधारण रूप से दर्शन होते हैं, शयन आरती के पश्चात् रात में ठाकुर जी शयन को जाते हैं और उनके जन्मोपरांत मध्यरात्रि प्रभु का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अनुपम महा अभिषेक होता है और उसके बाद लगभग दो बजे उनके दर्शन खुलते हैं. पूरे वर्ष में केवल इस दिन ठाकुर जी इस विशेष बेला में भक्तों के सामने मुस्कुराते हैं और अपने जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनकी छवि का वर्णन करना नामुमकिन है. महा अभिषेक कि सेवा दर्शनों के लिए नहीं होती और इस दौरान मंदिर के प्रांगन में श्रीमद भगवत कथा का विशेष आयोजन किया जाता है. वह दशम स्कंध के अंतर्गत कृष्ण जन्म कथा का पाठ किया जाता है. फ़िर लगभग ३:३० पे उनकी मंगला आरती की जाती है और प्रातः छः बजे तक उनके दर्शन खुले रहते हैं. महा अभिषेक का चरणामृत प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है और प्रभु के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दूध, नारियल और मेवा से निर्मित स्वादिष्ट पकवान भोग लगाकर भक्तों को दिए जाते हैं. इस दिन ठाकुर जी अपने कक्ष को छोड़ कर जगमोहन में आ जाते हैं और वहां स्वर्ण रजत के न्यारे सिंहासन पर विराजते हैं और रात भर अपनी टेढ़ी नज़रों के तीर से दीवानों को घायल करते हैं.

नशीली आँखों से जब वो हमें देखते हैं
हम घबराकर आँखे झुका लेते हैं
कौन मिलाये उन आँखों से आंखे
सुना है वो नज़रों से दिल चुरा लेते हैं

जन्माष्टमी के एक दिन पश्चात्, अर्थार्थ नवमी तिथि को वृन्दावन में नंदोत्सव मनाया जाता  है. मंदिर के गोस्वामी दर्शन करने आये भक्तों को मिठाई, फल, खिलोने, बर्तन, कपड़े इत्यादि बांटे जाते हैं. मंदिर में भक्तजन नन्द बाबा को बधाई देने के लिए भजन गाते हैं और लाला के जन्म कि खुशी में मस्ती से झूमते हैं. मंदिर में सब इतने मस्त होते हैं और सबको केवल अपनी ही आवाज़ सुनाई देती है, कोई किसी कि बात नहीं सुन सकता, बस सबका तार ठाकुर जी के श्री विग्रह से जुड़ा होता है. हर श्रधालु अपने ढंग से मज़े लूट रहा होता है, कोई गाता है, कोई नाचता है, कोई वंदन करता है, कोई प्रसाद उछालता है तो कोई उन्हें प्रसाद के रूप में बटोर लेता है. ऐसा लगता है मनो बहुत सारे पागलों की टोली मंदिर में झूम रही हो. और यह बात कोई मिथ्या नहीं है, वाहन सब पागल ही होते हैं और वृन्दावन में तो बुद्धि का काम ही नहीं होता. वाहन तो सब राधा नाम कि शराब ठाकुर जी कि नज़रों से पीते हैं और उस नशे में सब दुनिया को भूल कर मस्त हो जाते हैं. दोपहर को राज भोग आरती तक यह उत्सव मनाया जाता है.

जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर हमारी बाल कृष्ण के श्री चरणों में यह प्रार्थना है कि आप सबके जीवन में खुशहाली सदा बनी रहे और ठाकुर जी आपको अपनी मुस्कान से इसी प्रकार लुभाते रहें. आपका प्यार श्री जी के चरणों और अधिक विकसित हो और गुरूजी के आशीर्वाद का साया आपके सिर पे हमेशा बना रहे. इस पर्व पर हमारा उनसे यही विनम्र निवेदन है:

ब्रज धूलि प्राणों से प्यारी लगे
ब्रज मंडल में ही बसाये रहो
रसिकों के सुसंग में ही मस्त रहूँ
जग जाल से नाथ बचाए रहो
नित बांकी झांकी निहारा करूँ
छवि झांक से नाथ बचाए रहो
अहो! बांके बिहारी यही विनती
मेरे नैनो से नैना मिलाये रहो




वृन्दावन धाम में आनंद भयो रे
यशोदा माँ को लाल कृष्ण चंद भयो रे


आप सबको और आपके परिवार को हमारी ओर से और पूज्य गुरुदेव की ओर से जन्माष्टमी कि बहुत बहुत बधाई. 

एक बार जोर से कहिये
~~~~~ राधे ~~~~~बधाई हो ~~~~~ राधे ~~~~~





9 comments:

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  2. radhe radhe ap sabhi bhakton ko janamashtami parv ki hardik badhai. radha rani kripa kare.

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  3. kitne sundar sundar moti Pujya Gurudev ne nikaale Janmashtami ki katha mein..unke har shabd mein Prabhu Banke Bihari aur Radha Rani virajmaan the..
    Sudama charitra kehte samay Gurudev ne bataayaa ki teen guna bahuth aavashyak hai jeev ke liye "saral bano, sajal raho, aur teesri baath"..teesri baath kehte samay hamaraa computer kharab ho gaya tho sunn nahin paaye..kya kisiko yaad hai Gurudev ne teesri baat kya kahi thi? Krupaya bataayein..

    Jai Sri Radhey!

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    1. jai shri radhe pujya gurudev ne kaha tha"saral bano,sabal bano aur sajal bano.

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    2. Bahuth bahuth dhanyawaad.

      Jai Shri Radhey!

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  4. jai jai shri radhye

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  5. Birth of Krishna removes darkness in the world.

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  6. Birth of Krishna removes darkness in the world.

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