इस दुनिया में और विशेष रूप से हमारे भारत में धर्म को लेकर हमेशा विवाद चलता रहता है. अलग अलग धर्मो के अनुयायी किसी न किसी बात पे लड़ते रहते हैं. ऐसा केवल इसलिए होता है क्यूंकि हम मंजिल में नहीं, रास्तों में रूचि रखते हैं. हमारा ध्यान केवल उस परमात्मा पर केंद्रित नहीं होता अपितु उस मार्ग पर केंद्रित होता है जो उस तक ले जा रहा है. यदि एक सभा चल रही हो जहा एक आसन पर गौरांग महाप्रभु जी बैठ जाये, एक आसन पर पैगम्बर आया जाये, एक आसन पर गुरु नानक देव जी आ जाये और एक आसन पर ईसा विराजमान हो जाये तो उस सभा में कभी लड़ाई नहीं होगी क्यूंकि ये सारे महापुरुष उस परमात्मा तक पहुच चुके हैं, ये उन रास्तो से गुजार चुके हैं औरर इन्हें पता है
पहुंचा कोई काबे से, कोई दहर से पहुंचा
पर जो भी तुझ तक पहुंचा, तेरी महर से पहुंचा
बंधुओ, हमें उस इश्वर की बात करनी चाहिए, यही धर्म है. धर्म हमें उस तक पहुँचने के विभिन्न रास्ते दिखाता है, यह हमारी मर्ज़ी है हमें जो रास्ता अच्छा लगे हम उसे चुन ले, परन्तु धर्म हमें उन रास्तों को लेकर लड़ना नहीं सिखाता. हम तो चाहे एक ही नाम के उपासक हों, चाहे सबने एक सी वेशभूषा पहन रखी हो, परन्तु फ़िर भी हमारे विचारों में इतनी भिन्नता होती है कि हम छोटी छोटी बातों पर मतभेद हो जाता है. धर्म कि सही परिभाषा क्या है, इसको समझाने के लिए पूज्य गुरुदेव ने कथा में एक कहानी सुनाई थी, उस कहानी को आपको बताने का प्रयास कर रहा हूँ, आशा है आप लोग समझोगे.
एक बार जापान में एक फ़कीर अपने आश्रम में रहा करते थे. उन फ़कीर के हजारों चेले थे जो उनके आश्रम में उनकी सेवा किया करते थे. एक बार उनके आश्रम में उनके पास एक लड़का आया और यह विनती करने लगा कि हे गुरुदेव मुझे भी अपनी सेवा में रख लीजिए. तो उस फ़कीर ने कहा कि वैसे तो आश्रम में कोई काम नहीं है, पर तू यदि सेवा करना चाहता है तो जाके रसोई में चावल साफ़ करने का काम अपने सिर ले ले और जब मै तेरी सेवा से प्रसन्न हो जाऊंगा तो तुझे कोई नया काम दूंगा. वह लड़का रसोई में जाके चावल साफ़ करने लगा. उसका स्वभाव इतना अच्छा था कि कुछ ही दिनों में सब लोग उसके दोस्त बन गए. धीरे धीरे वह लड़का उस काम में इतना तल्लीन हो गया कि अब उसे संसार के और किसी काम में मज़ा ही नहीं आता था. कुछ समय बीता तो वह लड़का चावल साफ़ करते करते इस कदर खो गया कि उसे अपनी देह सुध भी न रही. वह दिन भर केवल चावल साफ़ करता रहता, न किसी से बोलता, न किसी से हँसता और न ही उस रसोई से बाहर निकलता. अब आश्रम के सरे लोगों ने उसे पागल समझकर उससे बोलना छोड़ दिया. कोई उसके पास भी न जाता और वह लड़का भी अपनी इस दशा में बहुत खुश था क्यूंकि उसे तो कुछ होश ही नहीं था. आश्रम में सत्संग-कीर्तन होता, वह उनमे भी नहीं जाता था.
एक दिन फ़कीर बीमार पद गए और अपनी योग साधना से उन्होंने पता लगा लिया कि उनकी मृत्यु निकट है. उन्होंने सोचा कि मै अपने सामने ही इस आश्रम को एक नया वारिस दे जाऊंगा जिससे मेरे मरणोपरांत यहाँ कोई अव्यवस्था न हो. तो उन्होंने यह एलान कर दिया कि जो भी चेला धर्म की सही परिभाषा बताएगा, उसे आश्रम का मालिक बना दिया जायेगा. इतना सुनते ही सारे लड़के अपनी अपनी परिभाषा खोजने में लग गए परन्तु किसी की हिम्मत न होती कि गुरूजी को जाके अपनी परिभाषा सुनाये. बड़ी मुश्किल से एक लड़के ने हिम्मत की और अपने दोस्तों से कहा कि मै अपनी परिभषा गुरूजी के कमरे की सामने वाली दीवार पे लिख जाऊंगा और आश्रम छोड़ दूंगा. अगर गुरूजी को पसंद आये तो मुझे सामने वाली पहाड़ी से बुला लेना अन्यथा बोल देना कि हमें नहीं पता वो कहाँ है. उसने लड़के ने लिखा
मन एक दर्पण है, जिसपे कर्मो की धूल जमी है
उस धूल को हटा दो, परमात्मा मिल जायेगा
जब सुबह फ़कीर ने ये पढ़ा तो क्रोध से आग बबूला हो गए. सबको डांटने लगे कि किस पागल ने यह लिखा है. तो सबने मना कर दिया कि हमें नहीं पता. देखा जाये तो बंधुओ उस लड़के ने कुछ गलत नहीं लिखा, पर फ़िर भी फ़कीर को समझ नहीं आया. वो लड़का जो चावल साफ़ करता था, वो इन सब बातों से बेखबर था. एक दिन इस परिभाषा की बात करते हुए कुछ लड़के रसोई के आगे से निकले. जब उसने इस बात को सुना तो जोर जोर से हँसने लगा. सब हैरान हो गए कि ये तो कभी किसी से नहीं बोलता था आज कैसे हँस रहा है. जब उससे पुछा तो वह बोला कि ये परिभाषा ही ऐसी है हंसी आ गयी. और उन सब से कहा कि तुम जाओ और उस दीवार पे लिख दो
मन बाकी ही नहीं बचा, तो धूल कहा से जमे
और परमात्मा कब खोया था जो मिल जायेगा
सबने ऐसा ही लिखा और जब सुबह उठ कर फ़कीर ने यह पढ़ा तो खुशी से रोने लगे. जब सब लडको ने देखा कि गुरूजी को परिभाषा पसंद आ गयी तो सब उनके पास गए. गुरूजी ने कहा बुलाओ उस लड़के को जो चावल साफ़ करता है, ये बात उसके सिवा कोई लिख नहीं सकता. सब लड़के हैरान हो गए कि गुरूजी को कैसे पता चला. तो फ़कीर ने बताया कि तुम लोग तो सत्संग कीर्तन करते थे, फ़िर भी तुमने धर्म का सही मतलब नहीं समझा और इस लड़के ने केवल चावल साफ़ करते करते धर्म को इतनी गहराई से जान लिया क्यूंकि ये जो भी कर्म करता था पूरी निष्ठां से करता था. चावल साफ़ करना ही इसका धर्म था औ वही इसका कर्म भी था. यह बात सुनकर सरे लड़के लज्जित हो गए और इस लड़के वो उस आश्रम का प्रभुख घोषित कर दिया गया.
कहने का अभिप्राय यही है कि धर्म केवल हमारे ह्रदय कि उपासना है और अध्यात्म में वासना ही उपासना का रूप धारण करती है. मै आशा करता हूँ कि आप सब धर्म को समझेंगे और समाज को सुधरने का प्रयत्न करेंगे.
किशोरी जी आप सब पर कृपा करें
राधे राधे
ReplyDeleteबहुत सुंदर