जो प्रणत होए मेरे ठाकुर को
वा करे विपिन को वास
और दीप जलें आनंद मिले
ऐसो या कार्तिक मास
पद्मपुराण और स्कन्दपुराण में श्री बांके बिहारी जी महाराज ने स्वयं कार्तिक के पवित्र मास के महात्म का बहुत ही सुंदर ढंग से विस्तार किया है. उन्होंने कहा है कि जो एक बार इस मास में ल्रभु को प्रणत हो जाता है, उसे प्रभु हमेशा अपने चरणों का दास बना लेते हैं. वैसे तो इस मास में भक्त अनेक नियम, व्रत आदि लेते हैं, परन्तु पद्मपुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कार्तिक मास में केवल सूर्योदय से पहले स्नान कर ले तो उसे प्रत्येक तीर्थ में स्नान करने का फल प्राप्त होता है. प्रभु ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं कार्तिक मास में ही की थीं. पूज्य गुरुदेव से हम सब ने उखल बंधन लीला का प्रसंग सुना है. तो उखल बंधन लीला कार्तिक के इसी पवित्र मास में हुई थी. परभू माँ के प्रेम के बंधन में बांध गए थे. इसलिए इसे दामोदर मास भी कहा जाता है और ब्रज वासी ऐसा मानते है कि जो इस मास में प्रभु कि भक्ति करता है तो बिहारी जी उसके प्रेम के बंधन में भी बांध जाते हैं और यदि कोई शक्ति भगवन को बांध सकती है तो वेह है केवल भक्तो के आंसुओ कि धारा.
कार्तिक के इस पवित्र मास में प्रभु ने एक और भी बड़ी सुंदर लीला की थी. हम सब जानते है कि प्रभु को गौएँ बहुत प्रिय है. तो भक्तों हमारे कन्हैया कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पहली बार गौएँ चराने के लिए गौ चारण वन गए थे और उन्होंने वहाँ अपनी मुरली से गौओं को भी सम्मोहित कर दिया था. और इसी दिन को हमारे ब्रज में गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है.
गोपाष्टमी के ठीक अगले दिन अर्थार्थ कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है. हमारे शास्त्रों ऐसा लिखा हुआ है कि त्रेता युग इसी दिन से प्रारंभ हुआ था. और इसी दिन सूर्य नारायण ने माँ दुर्गा कि उपासना की और उन्होंने माँ ने असंख्य उपहार भेंट में दिए जिन्हें हम आज सौर उर्जा के रूप में प्रयोग कर रहे हैं. अक्षय नवमी के दिन भक्त लोग मथुरा-वृन्दावन कि युगल परिक्रमा लगाते हैं. सूर्योदय के पूर्व उठकर सभी भक्त एवं रसिक श्री यमुना जी का स्नान करके परिक्रमा प्रारंभ करते हैं और ब्रज रज को अपने मस्तक से लगाकर नंगे पाँव संध्या तक परिक्रमा पूर्ण करके उसे बिहारी जी के श्री चरणों में समर्पित करते हैं. ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने का एक अर्थ यह भी है कि आप आपने लिए मुक्ति के द्वार खोल रहे हैं क्यूंकि जब मुक्ति ने अपनी मुक्ति पूछी थी प्रभु से तो भगवन ने उसे भी यही कहा था कि ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने से मुक्ति भी मुक्त हो जाती है.
वृन्दावन कि गलिन में मुक्ति पड़े बिलखाये
मुक्ति कहे गोपाल सों तू मेरी मुक्ति बताये
पड़ी रह्यो या गलियों में यहाँ पंथी आवे जाएँ
ब्रज-रज उड़ मस्तक लगे, तो मुक्ति मुक्त है जाये
पड़ी रह्यो या गलियों में यहाँ पंथी आवे जाएँ
ब्रज-रज उड़ मस्तक लगे, तो मुक्ति मुक्त है जाये
तो भक्त जन इसी ब्रज-रज को अपने मस्तक पर लगाये हुए श्री धाम वृन्दावन के सभी प्रमुख स्थानों के दर्शन करते हुए मधु पूरी मथुरा में प्रवेश करते हैं. मथुरा में भी सर्व-प्रथम सब विश्राम-घाट पे यमुना जी का स्नान करते हैं और फ़िर मथुरा में मंदिरों के दर्शन करते हैं. अंत में जब सब ब्रज-रज से अपने शरीर को सुसज्जित कर लेते है, ब्रज-रज से अपना श्रृंगार करते हैं और वृन्दावन लौटते हैं और बाँके बिहारी जी को अपनी यात्रा समर्पित हैं. वैसे तो इस प्रथा के लिए अत्यंत बल और सहन शक्ति कि आवश्यकता होनी चाहिए परन्तु ऐसा देखा गया है कि मेरे ठाकुर जी कि कृपा से कमज़ोर दिखने वाले भक्त भी इस परिक्रमा को बड़ी सरलता से सम्पुर्ण कर लेते हैं.
भगवान के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने सब भक्तों को यह सौभाग्य दें कि वे वृन्दावन में आकर परिक्रमा लगाये. परन्तु यदि आप प्रभु को याद करते रहोगे तो भगवान भी आपके प्रेम से विवश होकर आपको बुला ही लेंगे. और जब तक प्रभु न बुलाए तब तक का इंतजाम हमारे पूज्य छोटे गुरुदेव श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी ने कर ही रखा है. आप सब मानसिक परिक्रमा गुरुदेव के साथ राधे नाम का आश्रय लेकर लगाएं और मन में यही भाव रखें कि कभी हमें यह सौभाग्य भी मिले कि हम श्री धाम में जाकर इस परिक्रमा को करें.
आप सब पर राधा राणी अपनी दया बनाये रखे
गुरुदेव का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे
प्रेम से कहिये
श्री राधे ! श्री राधे !! श्री राधे !! श्री राधे ! श्री राधे
KARO DRISHTI AB TO PRABHU KARUNA KI BADI AARZOO THI MULAKAAT KI..
ReplyDeletebrij dhur ho praano se pyari lage
brij mandal maahi basaye raho
rasiko ki susang me mast rahu
jag jaal ne naath bachaye raho
nit baanki ye jhaaki nihara karu
chhavi chhaak so naath chhakaye raho
aho Bankey Bihari yahi vinti
mere nayana se nayana milaye raho
Jai Shri Kunj bihari-biharinaey nama
kya baat hai dil khush kar diya apne bhakt ji.
ReplyDeleteJai Bihari ji ki
Jai Radha Rani ki
very nice. thankx for sharing.
ReplyDeleteanshu ji where is the prince ji and maddy ji these days?
meri taraf se unko radhe radhe.
Prince ji aur Maddy ji yahi pe hai aur mujhe unhi ki sewa ka saubhagya prapt hai.
ReplyDeleteMujhe apki taraf se unhe radhey radhey bolne ki zarurat nahi hai, apne keh diya unko mil gaya hai apka sandesh.
Jai Shri Radhey
Radhe Radhe, Radhe shyam ji..
ReplyDeleteAp bhakto ko humara naam yad hai yahi bahut hai humare liye to.. Bahut Bahut dhanevad..
Is bhakt ka parnam apko..
Radhe Radhe..
Radhe Radhe..
ReplyDeleteBahut achi achi pr gyan wali bate likhi hai anshu ji... bahut pyari..
Radhe Radhe..
sab gurudev ka aashirwad hai aur radha rani ki kripa hai hamara to kuch hai hi nahi
ReplyDeletebas unhi ke liye likha hai apko pasand aaya apka nahut bahut dhanyavaad
Radhey Radhey
happy gopaastmi to "ladeswar" shribanke bihariji......
ReplyDeleteछोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल
छोटो सो मेरो मदन गोपाल
आगे आगे गईं पीछे पीछे ग्वाल
बीच में मेरो मदन गोपाल.....
"HARE KRISHNA'S DASI"
Gopaashtmi ki badahai sabhi bhakto ko - Anshu bahut acha likha hai - Anand aa gaya -- radhe radhe
ReplyDeletethanks Shagun di
ReplyDeleteSab unhi ki prerna se likhta hu
Happy Gopashtami to all
Radhey Radhey
kya gurudev ki aur gaurav ji ki katha ka ab sanskar ya aastha me telecast nahi hoga.adhaytma t.v. hamari cable me available nahi hai.....hume katha ke liye aur kitna intzar karna padega..
ReplyDeleteRadhe Radhe..
ReplyDeleteHanji bhaiya Ji.. ab sirf adhyatm pe hi ayega.. astha ya sanskar pe sirf important festival wale he sirf aynge.. Katha to ab nhi ayegi.. sirf adhyatm pe..hum sabhi yahi dua karenge jald se jald hum katha ka amrit pan kare..