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Saturday, September 8, 2012

चातुर्मास : व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने

सभी भक्तों को मेरी ओर से जय श्री राधे. अपने पिछले लेख में मैंने आप सबको पुरुषोत्तम मास के विषय में जानकारी देने का प्रयास किया था और आज मै चातुर्मास के विषय में कुछ लिखना चाहता हूँ. 

चातुर्मास ४ महीने कि अवधि है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनाया जाता है. इस अवधि में ज्ञानयोगी, कर्मयोगी और प्रेमी भक्तजन सभी कुछ नियमों का पालन करते हैं और अपनी श्रद्धानुसार उपवास भी रखते हैं. इस दौरान फर्श पर सोना बहुत शुभ माना जाता है. मौन व्रत धारण करना और अपना अधिकतम समय श्री हरी विष्णु की सेवा में व्यतीत करना भी बहुत फलदायी होता है. हमारे शास्त्रों के अनुसार भगवान चातुर्मास में योग निद्रा में विश्राम करते हैं. अतः इस अवधि में सभी शुभ कर्म जैसे विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि निषेध माने जाते हैं. 

पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है:
एक बार असुरराज विरोचन के पुत्र बाली ने अश्वमेघ यज्ञ करके बहुत पुण्य अर्जित कर लिया और सभी दैत्य देवताओं से उच्च श्रेणी में पहुच गए  और इन्द्र से उनका सिंघासन छीन लिया गया. इन्द्र सभी देवताओं सही भगवन नारायण की शरण में गए और भक्तवत्सल भगवान ने उन्हें वचन दिया कि कि वो उनकी सहायता करेंगे. प्रभु ने एक छोटे से बालक का वामन अवतार धारण किया और साथ में शिवजी ने भी बाल रूप धरा और बटुक भैरव के नाम से विख्यात हुए. वामन भगवान राजा बलि के द्वार पर पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि का दान माँगा. यह कथा हम सबने पूज्य गुरुदेव के श्री मुख से सुनी है. तो भगवान ने अपना तीसरा चरण राजा बलि के सिर पे रखा तो उसे नर्क में प्रभु ने धकेल दिया और पाताल लोक का राज्य भी दे दिया. बलि की सच्चाई से प्रसन्न होकर वामन भगवान ने उसे एक वर मांगने को कहा तो राजा बलि ने ठाकुर जी से यह विनती की कि वो माँ लक्ष्मी सहित उनके साथ साल के तीसरे हिस्से के लिए रहें अर्थार्थ प्रभु को अपनी वामंगिनी सहित एक तिहाई साल के लिए (४ महीने) राजा बलि के साथ रहना था. प्रभु ने उसकी मनोकामना पूर्ण की और इसी चातुर्मास में प्रभु राजा बलि के साथ पाताल लोक में निवास करते हैं. इसलिए चातुर्मास के प्रारंभ को देवशयनी एकादशी कहा जाता है और अंत को देवोत्थान एकादशी. 

शास्त्रों में चातुर्मास व्रत के लिए कोई नियम आदि नहीं बताये गए हैं, यह तो श्रद्धालु की अपनी श्रद्धा है कि वो किस प्रकार अपने इष्ट को रिझाना चाहता है परन्तु कुछ भक्त बहुत कठिन नियमों के साथ इस व्रत का पालन करते हैं. कुछ नियम मै नीचे बताने का प्रयास कर रहा हूँ. 
सूर्योदय से पहले उठना, ब्रह्म बेला में स्नान और तत्पश्चात भगवान की पूजा. इस व्रत में दूध, शक्कर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, मास और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता. कुछ भक्त अलग अलग महीनो में अलग अलग नियमों से व्रत रखते हैं. 

श्रावण : पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि 
भाद्रपद : दही 
अश्विन : दूध
कार्तिक : प्याज, लहसुन और उरद की दाल


चातुर्मास में परभी कि कथा सुनने का विशेष महत्व है. इसलिए मेरा आग्रह है कि आप सब अध्यात्म चैनल के माध्यम से पूज्य गुरुदेव के श्रीमुख से कथा का अमृत पान ज़रूर करें और अपने जीवन को धन धन्य बनाकर कृतार्थ करें. जो नियम मैंने ऊपर बताये, उनका पालन करना एक गृहस्थ के लिए कठिन होता है. इसलिए हम अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी एक नियम मानकर व्रत रख सकते हैं. कुछ नियम और उनके फल मैं नीचे लिख रहा हूँ. 

  1. नमक का परहेज़ : हमारी आवाज़ को मधुरता प्रदान करता है
  2. तेल से परहेज़ : लंबी उम्र 
  3. कच्चे फल और सब्जियों से परहेज़ : शुद्धता प्रदान करता है
  4. सुपारी से परहेज़ : खुशहाली प्रदान करता है 
  5. दूध या दूध से निर्मित पदार्थों से परहेज़ : शांति प्रदान करता है
  6. शहद से परहेज़ : जीवन में चमक प्रदान करता है
  7. मदिरा से परहेज़ : अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करता है
  8. गरम भोजन से परहेज़ : हमारी संतान को दीर्घायु बनाता है
  9. फर्श पर विश्राम : भगवान विष्णु कि कृपा प्रदान करता है
  10. मासाहार से परहेज़ : योगिओं और मुनियों की गति प्रदान करता है
  11. दिन में केवल एक बार भोजन : अग्निहोत्र के परिणाम प्रदान करता है
  12. केवल दोपहर का भोजन : देवलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  13. केवल रात्रि में भोजन : तीर्थ यात्रा का आनंद प्रदान करता है
  14. प्रभु के चरण कमल का स्पर्श : उन्नति प्रदान करता है
  15. प्रभु के मंदिर की सफाई : अच्छा घर प्रदान करता है
  16. मंदिर की परिक्रमा : मोक्ष प्रदान करता है
  17. मंदिर में गायन : गन्धर्वलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  18. शास्त्रों का अध्यन : विष्णुलोक में प्रवेश प्रदान करता है
  19. मंदिर में जल का छिडकाव : अप्सरालोक में प्रवेश प्रदान करता है
  20. विष्णु जी कि पूजा : वैकुंठ में निवास प्रदान करता है
  21. फर्श पर बिना बर्तन के भोजन करना : शक्ति प्रदान करता है
  22. रोजाना स्नान : स्वर्ग प्रदान करता है
  23. कोई अपशब्द न कहना : समाज में उच्च स्थान प्रदान करता है
आशा करता हूँ आप सबको इस लेख के माध्यम से कुछ नयी जानकारी प्राप्त हुई होगी. यदि आपको मेरे लिखने में कोई त्रुटी महसूस होती है तो आपके सुझाव आमंत्रित हैं. मुझे बेहद खुशी होगी यदि आप मुझे मेरी गलतियों को सुधारने का मौका दें. अगले लेख में एक बार फ़िर मै आपके साथ रूबरू होऊंगा भगवन श्री कृष्ण और राधा राणी की एक मनमोहक लीला के साथ. 

जय श्री राधे 

4 comments:

  1. Radhe Radhe Anshu ji itne ache gyan ke liye dhanyawad.Hume bhi apke agle lekh ka intzar rahega. shri radhe.

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  2. bahut upyogi jaankari pradan ko hai aapne iske liye aap badhaai ke patra hai.

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