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Sunday, June 17, 2012

कहानी खाटू वाले श्याम बाबा की


बाबा श्याम को ये दिल नज़र कर चुकी हूँ
और बदले में उसके मै दर्द ले चुकी हूँ
वो तारे न तारे समझ उनकी अपनी
गुनाहों कि अपने खबर दे चुकी हूँ
है दावा अदालत में दीवानगी का
ज़मानत में दिल और जिगर दे चुकी हूँ
वो आयें न आयें समझ उनकी अपनी
मै मरने कि अपने खबर दे चुकी हूँ

इस कलयुग में हमारे ठाकुर जी कि पूजा तो होती है और साथ में उनका एक और रूप है जो देश-देशांतर में बहुत ही श्रधा भावना के साथ पूजा जाता है. वो रूप है हमारे खाटू श्याम जी का, लखदातार का, शीश के दानी का, हारे के सहारे का और बाबा श्याम प्यारे का. अपने इस लेख में मै बताना चाहता हूँ कि इन खाटू श्याम जी ने ऐसा क्या किया जो उन्हें प्रभु ने अपने नाम ही दान दे दिया. 

ये द्वापर युग में महाभारत के समय कि बात है, एक वीर बालक था जिसका नाम था बर्बरीक. वो इतना वीर था कि स्वयं सरस्वती और शेष नाग भी उसकी वीरता का बखान करने में असमर्थ थे. तो हमारे मुरली बजैया कृष्ण कन्हैया ने उस बालक की परीक्षा लेनी चाही. वो उस बालक के समक्ष गए और उसे कहा कि यदि तुम वीर हो तो अपनी वीरता का प्रमाण दो. अब ठाकुर जी यदि परीक्षा ले रहे हो तो कौन पीछे हटेगा और बर्बरीक तो स्वयं कृष्ण प्रेम में दीवाने थे. उन्होंने ठाकुर जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. तो द्वारिकाधीश उन्हें एक पीपल के पेड़ के पास लेके गए और कहा कि तुम एक ही बाण से इस वृक्ष के सारे पत्तों में छेद कर दो और कृष्ण जी ने चुपके से उस पेड़ का एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया. बर्बरीक ने अपना बाण धनुष पे चढ़ाया और ठाकुर जी चरणों का स्मरण करके उसे वृक्ष की ओर छोड़ दिया. उस बाण ने वृक्ष के सारे पत्तों में छेद कर दिया और उसके बाद वो ठाकुर जी के चरणों के इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगा. भगवन श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि इस बाण को दूर करो ये मुझे चोट पहुंचा देगा, तो बर्बरीक ने कहा कि हे प्रभु, आप अपना पैर उस पत्ते के ऊपर से हटा लीजिए तभी ये बाण आपको मुक्त करेगा क्यूंकि एक वही पत्ता बचा है जिसे मेरे बाण ने नहीं छेदा. ठाकुर जी उस बालक कि वीरता देख कर गद्गद हो गए और अपने मन में विचार किया कि ये वीर है परन्तु बालक है. इसलिए दुर्योधन बड़ी सरलता से इसे अपनी ओर ले सकता है और यदि बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेगा तो पांडव महाभारत नहीं जीत सकते क्यूंकि ठाकुर जी अपने भक्त को भी नहीं हारता हुआ देख सकते. इसलिए प्रभु ने लीला रची और बड़े दीन हीन बनकर बर्बरीक से बोले कि मै तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ. यदि भक्तो के सामने ठाकुर जी झोली फैला लें तो उस समय का क्या मंज़र होगा और उस भक्ति का क्या आलम होगा, ये बयां कर पाना अत्यंत कठिन है. इसलिए बर्बरीक ने भी कह दिया कि मांग लो प्रभु यदि जाँ भी मांगोगे तो दे दूँगा. भगवान हँस कर बोले, बस बेटा वही चाहिए दे दे. मुझे अपने शीश का दान कर दे. और धन्य है बर्बरीक की भक्ति, कि उसने बिना किसी दुःख के अपना शीश प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया और प्रभु से विनती कि कि हे प्रभु, मै आपको अपना शीश तो दे रहा हूँ पर मेरी एक इच्छा थी कि मै माहाभारत के युद्ध को अपनी आँखों से देखूं, आप मेरी ये इच्छा पूरी करो. तो भगवन ने बर्बरीक का शीश एक पहाड़ी पर विराजमान करा दिया और कहा कि तुम निष्पक्षता के साथ युद्ध को देखो. जींद के पास पढाना नाम से आज भी वह गांव है जहा बर्बरीक ने अपना शीश दान दिया था और उस जगह श्याम बाबा का बड़ा सुंदर मंदिर बना हुआ है. 

सच में बंधुओ, हमारे ठाकुर जी बड़े निराले हैं, अपने भक्त की परीक्षा भी लेते हैं और यदि सफल हो जाओ तो जान भी मांग लेते हैं. इसलिए किसी भक्त ने कितना सुंदर कहा

सब कुछ लेके परीक्षा हैं लेते
अब कौनसी राह चले संसारी
ऐसा मोहक जाल बिछाये 
हा भैया, थक कर रह गयी बुद्धि बेचारी
सोच समझ के सौदा कीजो
ये नन्द का लाल बड़ा व्यापारी

महाभारत के युद्ध के पश्चात्, जब भगवान पांडवों के साथ जा रहे थे, तो पांडव अहंकार के मद् में चूर थे. उन्हें लग रहा था कि ये सब उनकी वीरता के कारण कुआ है, उन्हें लगा कि महाभारत का युद्ध उन्होंने अपने बल पे जीता है. पर ठाकुर जी ने उनका अहंकार तोड़ने के लिए बर्बरीक को अपने पास बुलाया और कहा कि तुमने पूरा महाभारत का युद्ध देखा है, मुझे बताओ तुमने क्या देखा. तप बर्बरीक बोले प्रभु मैंने तो कुछ नहीं देखा, मुझे तो सिर्फ आपका सुदर्शन चक्र दिख रहा था जो कुरुक्षेत्र कि रणभूमि में घूम घूम कर पापियों का विनाश कर रहा था. इतना सुनते ही पांडव शर्म से पानी पानी हो गए और प्रभु इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बर्बरीक को यह वरदान दे दिया कि हे बेटा बर्बरीक, आज से तू मेरे नाम से जाना जायेगा, मै तुझे अपना नाम दान में देता हू तेरा नाम होगा श्याम, और तुझे कलयुग में मेरा अवतार मना जायेगा और खाटू नगर में तेरा विशाल मंदिर होगा जहा अनेक भक्त एके तेरी चौखट पे नाक राग्देंगे और तू उन्हें अभय दान प्रदान करना. 

इसलिए हमारे खाटू नरेश का बहुत विशाल दरबार है खाटू में और वह जो भक्त दर्शनों के लिए जाते है, वो बाबा के ही हो जाते हैं. जो जादू हमारे वृन्दावन के बांके बिहारी के विग्रह में है, वही जादू, वही नशा और वही शांति खाटू नरेश के शीश में भी है. मै ये सुनी सुनाई बात नहीं कह रहा हूँ, मुझे खुद अनुभव हुआ क्यूंकि इस द्वादशी को श्याम बाबा ने प्रथम बार मुझे अपने दर पे बुलाया और मैंने बाबा के दर्शन किये तो मन में यही भव आया

सूरत ऐसी कि सब गुलामी करें
और कदम इसे कि फ़रिश्ते भी चूमा करे
जिसने देखा तुझे एक बार मेरे बाबा
वो होके दीवाना खाटू कि गलियों में घूमा करे


खाटू नरेश की जय
हारे के सहारे की जय
~~~~~ बोलो श्याम प्यारे की जय ~~~~~
नीले घोड़े वाले की जय
तीन बाण धारी की जय

1 comment:

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