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Sunday, May 6, 2012

महिमा श्रीधाम वृन्दावन की

मनमीन मुनियों के जहाँ, वह वंशी-मयी रसधार यही है
शुकदेव से ज्ञानी को तारने की, तिरछे दृग की तलवार यही है
ब्रजवासियों का ये स्नेह सरता, और गोपियों का दिलदार यही है
दिल लूट लिया जिसने हमरा, वह सांवरा नन्द कुमार यही है

हमारे ब्रज के एक रसिक संत हैं जिनका नाम है प्रभुदानंद सरस्वती जी. इन संत को श्री धाम वृन्दावन से इतना प्यार था कि इन्होने वृन्दावन कि महिमा में एक पूरा ग्रन्थ ही लिख दिया, "वृन्दावन महिमम्रित". इस ग्रन्थ में १०० शतक हैं और एक शतक में १०० श्लोक हैं. अर्थार्थ सरस्वती जी ने पूरे १०,००० श्लोक लिख दिए ब्रज कि महिमा के और फ़िर भी अपने ग्रन्थ के अंत में उन्होंने कहा है कि वृन्दावन कि महिमा की यह तो केवल शुरुआत है. प्रभुदानंद सरस्वती जी कहते हैं कि वृन्दावन कि भूमि तो इतनी पवित्र है कि यदि एक छोटी सी चिड़िया भी उड़ के वृन्दावन में आजाये तो वो भी ठाकुर जी के समान हो जाती है. वृन्दावन में प्रवेश करने के पश्चात् कोई कुछ नहीं रहता, वह केवल ठाकुर का होता है और ठाकुर उसके होते हैं. श्रीधाम वृन्दावन हर प्रकार से पूर्ण है परन्तु फ़िर भी जो मूर्ख इस स्थान कि कमियों को देखते हैं, वो तो अंधे हैं और मेरी युगल सरकार के चरणों में यह विनती है कि मुझे मरते दम तक इन अन्धो का दर्शन न हो क्योंकि ये लोग तो जब में हंसाई के पात्र हैं. फ़िर प्रभुदानंद जी कहते हैं मेरे नेत्र वृन्दावन कि सुंदरता को देखकर खुशी से झूम जाएँ, मेरी बुद्धि यहाँ के प्रेम के रस में डूब जाये, मेरा शरीर यहाँ कि हवाओं के साथ बह जाये और मै लोट लोट के ब्रज रज को अपने ऊपर लगा लूं और एक लकड़ी कि भाँती मै हर ब्रजवासी के चरणों में गिर पडूं. वो विधाता से यही प्रार्थना करते हैं कि हे! इश्वर जो वृन्दावन सरे जगत को प्रेम और भक्ति का पाठ पढाता है, मै हमेशा उस वृन्दावन से प्यार करूँ, जहाँ उस कदम्ब के वृक्ष के तले, वो सांवरा सलोना यशोदा नंदन अपनी पीताम्बरी ओढ़े किशोरी जी के मुख-चंद्र का दर्शन करता हो और मधुर स्वर में मुरली बजता हो. 

बंधुओ, इस ग्रन्थ के भाव तो उतने ही गंभीर हैं जितने गोपी गीत के. इसलिए मुझ मंद-बुद्धि के लिए इस ग्रन्थ का सार लिखना तो नामुमकिन है पर हाँ ऊपर कुछ श्लोकों का विवरण लिखने कि चेष्टा ज़रूर की है. हमारा वृन्दावन तो इतना दिव्य है कि जब एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी ने वृन्दावन और स्वर्ग को तराजू पे तोला, तो यही निष्कर्ष निकला,

वृन्दावन और स्वर्ग को तोले तुलसीदास
भारी भू पर रह गयो, और हलकों गयो आकास

हमारे वृन्दावन के सामने तो स्वर्ग भी हल्का रह गया. द्वापर में जब एक बार वरुण देव नन्द बाबा को उठा ले गए थे, तो प्रभु उन्हें वापिस लाने के लिए वरुण लोक में पधारे थे. जब प्रभु अपने ग्वाल बालों के पास आये तो उन्हें लगा कि कन्हैया ने अपने बाबा को कोई दिव्य लोक को दर्शन करायो है और वो जिद करने लगे कि कन्हैया तू हमें अपने गोलोक को दर्शन करा. ठाकुर जी ने उन्हें समझाया कि जो वृन्दावन के वासी हैं वो गोलोक नहियो जाते क्यूंकि वृन्दावन तो गोलोक से भी श्रेष्ठ है पर ग्वाल बल नहीं माने. तो प्रभु ने उन्हें आंख बंद करने को कहा और आंख बंद करते ही वो सब एक दिव्य धाम में पहुच गए जिसका एक बहुत बड़ा प्रवेश द्वार है और वहां बड़े बड़े भक्तो कि सवारी निकल रही है. वो सारे गोप उस दरवाज़े के अंदर घुसे और अपने कन्हैया के महल को ढूँढने लगे. जब वो चल रहे थे तो पीछे से गोलोक का एक मंत्री आया और जोर से चिल्लाया, "ग्वालों सावधान". वो सारे बालक डर गए. पूछा "बाबा, का भयो, हमसे कोई भूल है गयी है". तो वो मंत्री बोला कि "अरे ग्वालों तुम्हे चलना नहीं आता, यह बैकुंठ है, यहाँ केवल नाचते हुए चलने का नियम है". ग्वाल बाल सब एक दूसरे का चेहरा देखने लगे कि ये अच्छा गोलोक है. तभी एक ग्वाल पीछे से बोला, "हम नाच के तो चल लेंगे पर आप नेक ये बता दो कि हमारो कन्हैया कहाँ हैं". वो मंत्री फ़िर चिल्लाया कि अरे ग्वालों तुम्हे तो बोलना भी नहीं आता. यहाँ तो केवल गाते हुए बोलना होता है. अब सारे बालक घबरा गए कि भैया ये क्या मुसीबत है. अगर बोलने को मन होए, तो पहले तबला ढोलक को इंतजाम करो, तब मुह से आवाज़ निकल सकते हैं और इसी घबराहट ने सबने आँख खोल दी और देखा कि उनका कन्हैया उनके सामने खड़ा है और वो वापिस अपने ब्रज में पधार चुके हैं. तो सब ग्वाल बालों ने भागवत में कहा है कि स्वर्ग से भी अच्छा तो हमारा वृन्दावन है. 

श्री राधा राणी के पग पग पर प्रयाग जहाँ 
केशव की केलि-कुञ्ज, कोटि-कोटि काशी है
यमुना में जगन्नाथ, रेणुका में रामेश्वर, 
तरु-तरु पे पड़े रहत अयोध्या निवासी हैं
गोपिन के द्वार पर हरिद्वार बसत जहाँ
बद्री, केदारनाथ , फिरत दास-दासी हैं
तो स्वर्ग, अपवर्ग हमें लेकर करेंगे क्या
जान लो हमें हम वृन्दावन वासी हैं

बंधुओ, मेरा मन तो बहुत है कि वृन्दावन कि महिमा के विषय में और भी लिखूं, पर कुछ मर्यादाएं हैं जिन्हें निभाना आवश्यक है. हमारे श्रीधाम वृन्दावन कि महिमा तो अनंत है पर हम एक लेख को अनंत नहीं बना सकते, इसलिए मै अपने शब्दों को तो यहाँ विराम दे रहा हूँ पर आप सबको बताते हुए मुझे अपार हर्ष ह्पो रहा है कि मुझे लाडली जू ने अपने धाम में इस शनिवार को नरसिंह जयंती के अवसर पर बुलाया. मै कुछ चित्र आप सब भक्तों के लिए लाया था और यहाँ उन सब चित्रों का संग्रह आपको सौंपता हूँ. अधिकारिक नियमों के कारण बांके बिहारी जी के और बंदरों के डर के कारण निधि-वन के चित्र मै न ला पाया. 


यह वही कदम्ब का वृक्ष है जो ठाकुर जी की अनेक लीलाओं का साक्षी है. काली देह पर स्थित यह वृस्क्ष वास्तव में प्रभु के आनंद में डूबा हुआ प्रतीत होता है. 

यह है जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नव-निर्मित प्रेम मंदिर.

ये हैं प्रेम मंदिर में विराजमान हमारे रसिक आचार्य स्वामी श्री हरिदास जी महाराज

प्रेम मंदिर में गोवर्धन लीला का दर्शन 

श्री कृपालु जी महाराज कि सजीव प्रतिमा 

नरसिंह जयंती के शुभ अवसर पर रौशनी में नहाया हुआ हमारे ठाकुर बांके बिहारी जी का मंदिर. आज कल रोजाना ठाकुर जी के फूल बंगले सजते हैं और वो नित्य शाम को भक्तों के करीब आकर उन्हें दर्शन देते हैं. 


ठाकुर श्री राधा रमण लाल के दर्शन. राधा रमण जी भी फूल बंगले में विराजमान हैं और अपने सर्वांग के दर्शन दे रहे हैं. 

राधा रमण लाल कि संध्या आरती 


ठाकुर श्री राधा स्नेह बिहारी जी महाराज

मै आशा करता हूँ कि आपको यह चित्र देख के आनंद का अनुभव हुआ होगा. अपना कीमती समय देकर यह लेख पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद. अंत में केवल इतना ही कहना चाहूँगा 

एक बार अयोध्या, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे 
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे
कोटि बार कशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया, जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे
होते है दर्शन, प्रत्यक्ष यहाँ बिहारी जू के, वृन्दावन सा आनंद कहीं नहीं पाओगे 

12 comments:

  1. Whaaa anshu ji....
    maja agay...
    Shree RAdhe...

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  2. kyu ni ayega prince ji
    warnan kha ka h
    hmare shree dham vrindavan ka
    wo anshu ji k pyare pyare shabdo me,,
    words r not suffice to explain dis,,
    bht pyara h anshu ji..
    choo sweeeet..jst lik my vrindavan
    radhe..

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  3. Really true Shri Dham Vrindawan jaisa kuch bhi nahi ..Jai Shree RADHE.........

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  4. Radhey Radhey ji

    Aap sab bhakto ka bahut bahut dhanyavaad. Ye aap sab ka ashirwad aur dua hi hai jo mujhe likhne ki prerna deti hai. Apse yahi prarthana hai apna pyar hamesha banaye rakhna.

    Radhey ju Kripa Kare

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  5. Anshu bhaiya sach much aapne bahut h acha likha hai. Hamare vrindavan ki mahima to hai h nirali.
    Jai shree radhe!

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  6. Apka bahut bahut abhaar Rahul ji

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  7. Bahuth sundar likha hai.
    Hamein bhi darshan mil gaye aapke sundar lekh se.

    Jai Jai Radhey Radhey Shyam!
    Jai Jai Shri Vrindavan Dham!

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  8. BHAIYA SHRIDHAM VRINDAVAN KA VYAKHYAYAN OR CHITRA DEKHKAR LAGA KI SAKSHAT BIHARI JU KE CHARNO ME BAITHE HAI....JAI JAI SHREE RADHEY SHYAM

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  9. राधे राधे
    आप सभी आदरणीय भक्तों को मेरा प्रणाम
    वृन्दावन महिमम्रित ग्रन्थ कहां से प्राप्त होगा ?

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