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Sunday, December 18, 2011

आगामी कार्यक्रम

दिल्ली में निवास करने वाले पूज्य गुरुदेव के भक्तो के लिए एक बहुत बड़ी खुशी कि बात हम यहाँ बताने जा रहे हैं. गुरूजी कि कृपा अपने दिल्ली के भक्तों पर बरसने वाली है क्यूंकि अगले कुछ दिनों में यहाँ एक के बाद एक तीन कथाओं का आयोजन किया जा रहा है. नीचे पूज्य गुरुवार के आगामी कार्यक्रमों कि सूचि दी जा रही है:

परम श्रधेय आ० गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

1.) 17 दिसम्बर 2011 से 23 दिसम्बर 2011 : भोपाल, मध्य प्रदेश  

2.) 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011 : कोल्कता 

3.) 02 जनवरी 2012 से 08 जनवरी 2012 : रामलीला मैदान, पी.यु. ब्लाक, पीतमपुरा, दिल्ली 
(इस कथा का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)

4.) 10 जनवरी 2012 से 16 जनवरी 2012 : भवानी निकेतन स्कूल ग्राउंड, जयपुर 

5.) 26 जनवरी 2012 से 01 फरवरी 2012 : आदर्श नगर, दिल्ली 


परम श्रधेय आ० गो० श्री गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

1.) 17 दिसम्बर 2011 से 23 दिसम्बर 2011 : कोल्कता 

2.) 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011 : कमला नगर, दिल्ली 
(इस कथा का प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)
दिनाक- 26  से 1 जनवरी तक 
समय- 3 से गुरु इच्छा  तक 

3.) 10 जनवरी 2012 से 16 जनवरी 2012 : पडरौना, उत्तर प्रदेश 


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कमला नगर में कथा की जानकारी 

कथा व्यास : परम पूज्य श्रधेय गौरव कृष्ण शास्त्री जी महाराज 
दिनांक : 25 दिसम्बर 2011 से 31 दिसम्बर 2011
समय : दोपहर २ बजे से सायं ६ बजे तक 
कथा स्थल : " श्री मधुबन वाटिका ", बिरला स्कूल ग्राउंड, कमला नगर, दिल्ली 

(इस कथा का प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर देखा जा सकता है)

दिनाक- 26  से 1 जनवरी तक 
समय- 3 से गुरु इच्छा  तक 

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"" विशेष जानकारी ""
पिछले कुछ दिनों में हमें आप सब से बहुत सारा प्यार मिला है. अनेक भक्तों ने अपने भाव हम तक पहुचाएं और उनका सहयोग सराहनीय है. आप सब भक्तों के विश्वास और आस्था को देखते हुए यह बात बतानी हमारे लिए अति-आवश्यक हो गयी थी. हम यह बताना चाहते हैं कि यह ब्लॉग हम भक्तों के मिलने का एक स्थान है. इस ब्लॉग के जरिये हम अनेक भक्तों के निकट आये है और भक्तों की भावनाओ से भी हम परिचित हुए. जैसा कि पहले भी कई बार बताया जा चुका है, आज फ़िर से हम यह बताना चाहते हैं कि इस ब्लॉग से पूज्य बड़े गुरुदेव या पूज्य छोटे गुरुदेव या उनके किसी भी कार्यकारी सदस्य का व्यक्तिगत रूप से कोई सम्बन्ध नहीं है. वैसे तो यह ब्लॉग गुरूजी के आशीर्वाद के बिना संभव नहीं है परन्तु यहाँ पर डाले गए लेख गुरु जी के भागवत से मिला ज्ञान और भक्तों के अपने विचार हैं. उनमे गुरूजी का साक्षात् रूप से कोई योगदान नहीं है. यह ब्लॉग गुरुदेव द्वारा नहीं अपितु गुरुदेव की कृपा से चल रहा है. हमने यह कोशिश की है कि समय समय पर आपको यह जानकारी देते रहे जिससे कोई भी भक्त यह उम्मीद न रखे कि वह सीधे गुरूजी के संपर्क में है. हम आपकी भावनाओ कि बहुत इज्ज़त करते हैं, इसलिए हम प्रयासरत हैं कि किसी भी प्रकार से आपकी भावनाओ को ठेस न पहुचे परन्तु फ़िर भी जाने-अनजाने में यदि हमारे किसी कर्म से ऐसा हुआ है तो उसके लिए हम सब हाथ जोड़ के आपसे क्षमा याचना करते हैं. जैसा कि गुरूजी ने स्वयं शरद पूर्णिमा पे कहा था कि उनका खाता तो सिर्फ बांके बिहारी जी के चरणों में है, हम सब उनके श्री चरणों में यह विनती करते हैं कि वो हमें इस काबिल बनाये कि हम भी राधा राणी के चरणों में अपने जीवन का खाता खोल सके. 

प्रसारण जानकारी 
पूज्य बड़े गुरुदेव श्रधेय आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज की कथा का भोपाल, मध्य प्रदेश से विशेष प्रसारण आप देख सकते हैं दोपहर ३ बजे से केवल अध्यात्म चैनल पर. 

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Wednesday, December 7, 2011

बांके बिहारी की मुरलिया

मोहन के लब पे देखो, क्या खुशनुमा है बंसी
बंसी पे लब फ़िदा है या लब पे फ़िदा है बंसी
मुर्दे को करदे जिन्दा और जिन्दे को करदे मुर्दा
ये खुद खुदा नहीं, पर शान-ऐ-खुदा है बंसी

भगवान श्री बांके बिहारी जी को बांसुरी अत्यंत प्रिय है. हम मुरली के बिना ठाकुर जी कि कल्पना भी नहीं कर सकते. यह कोई साधारण बंसी नहीं है, इस बंसी के तो इतना प्रभाव है कि इस मुरली की तान ने भगवान भोलेनाथ की भी समाधी भंग कर दी थी. सब गोपियाँ इस मुरली को सुन के बावरी हो जाती थी. इस का प्रभाव तो यहाँ तक बताया जा चुका है कि जब भगवान बांसुरी बजाते थे, तो समय भी मानो उनको सुनने के लिए ठहर जाता था. 

क्या आपने कभी यह सोचा है कि भगवन ने केवल बांसुरी को इतना बड़ा सौभाग्य क्यों दिया कि बांसुरी हमेशा उनके साथ रहती है और उनके अधरामृत का पान भी करती है. वाद्य यन्त्र तो और भी अनेक हैं पर प्रभु ने केवल बांसुरी को ही क्यों चुना. अनेक टीकाकारों ने इसके अनेक कारण बताये हैं पर जैसा पूज्य गुरुदेव से सुना है आप सब को बताने जा रहा हू. 

भगवान को बांसुरी इसलिए प्यारी है क्यूंकि इसमें ऐसे तीन गुण है जो अन्य किसी भी वाद्य यन्त्र में नहीं होते. और इन्ही तीन गुणों के प्रभाव से बांसुरी भगवान के अधरों पर विराजमान हो गयी. 

बांसुरी का पहला गुण है कि यह अपने आप नहीं बजती. अर्थार्थ जब इसे फूंक मार के बजाया जायेगा तभी यह बजेगी. तो आप प्रश्न कर सकते हैं कि ऐसे तो कोई भी वाद्य यन्त्र अपने आप नहीं बजता, सबको बजाना ही पड़ता है. पर यदि आप मुरली से ठोकर खाते हैं, तो यह आपका रास्ता नहीं रोकती, स्वयं एक ओर हो जाती है और आपको कभी हानि नहीं पहुंचाती. अब आप कभी ढोलक से टकरा के देखना. खुद तो बजेगी ही आपको भी बजा देगी. पर मुरली बड़ी शांत स्वाभाव की है. 

इसका दूसरा गुण है कि यह सदा मीठा बोलती है. कोई बालक जिसे बांसुरी बजानी नहीं आती है, यदि वेह भी इसको बजाता है तो इसका स्वर कर्कश नहीं लगता. हमेशा मधुर ही लगता है. और यदि किसी को बजानी आती हो तो व्यक्ति इसकी तान में ही खो जाते हैं. परन्तु अन्य यन्त्र केवल उसी व्यक्ति के हाथ में शोभा देते हैं जो उन्हें बजाना जानता हो. अन्यथा तो बहुत कर्कश ध्वनि उनमे से निकलती है. 

मुरली का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण गुण है उसकी सरलता और उसका भोलापन. आप देख सकते हैं कि मुरली में कभी कोई गांठ नहीं होती. यह ऊपर और नीचे से एक समान होती है और अंदर से खोखली भी होती है. ये जैसे ऊपर से दिखती है वैसी ही ये अंदर से भी है. 

बंधुओ, यदि बांसुरी के ये तीन गुण हम अपने अंदर भी जागृत कर लें, तो विश्वास रखिये कि भगवान आपको अपने अधरामृत से वंचित नहीं रख पाएंगे. वो आपको भी वही स्थान दे देंगे जो उन्होंने मुरली को दे रखा है. कहने का तात्पर्य यह है कि आप भी बिना कारण के मत बोलिए. जब बहुत आवश्यकता हो तभी बोलिए, व्यर्थ में इस जिह्वा का उपयोग न करें. और जब भी उपयोग करें दूसरों कि भलाई के लिए करें. हमेशा मधुर वाणी बोलिए. यदि कोई आपके साथ अपशब्द प्रयोग भी करता है तो आप उसे उसकी भाषा में जवाब देने के स्थान पर मधुर वचन बोलिए, तो सामने वाला व्यक्ति अपने आप लज्जित हो जायेगा और उसे अपनी भूल का एहसास भी हो जायेगा. पूज्य गुरुदेव कहा करते हैं:
दुनिया कभी किसी को मुहब्बत नहीं देती 
इनाम तो चाहती है पर कीमत नहीं देती
देने को तो दे सकता हूँ मै भी तुम्हे गाली
पर मेरी तहज़ीब मुझे इसकी इजाज़त नहीं देती
और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण, कि आप भी अपने अंदर से हर प्रकार कि गांठ को मिटा दीजिए. इर्ष्या, घृणा, राग, द्वेष जैसे जो दुर्गुण है उन्हें अपने अंदर ने निकल दीजिए, सबके साथ एक समान व्यव्हार करिये और अपने अंदर भोलेपन को जागृत करिये. सहज रहने कि आदत डाल लीजिए और हर कदम पे, हर साँस पे प्रभु कि कृपा का अनुभव करिये और खुश रहिये. 

यदि ये सरे गुण आप अपना लेते हैं तो आप भी भगवान को मुरली के समान ही प्यारे लगोगे. आशा करता हूँ कि आपको इस जानकारी से कुछ लाभ अवश्य होगा और यह बातें आपको प्रभु के नज़दीक ले जाने में सहायक अवश्य होंगी. 

विशेष सूचना 
परम श्रधेय आ० श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की कथा का गुना, मध्य प्रदेश से विशेष प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर देख सकते हैं. 
समय 
सुबह 10:40 से दोपहर 02:00 बजे तक 

राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे 

Monday, November 28, 2011

बिहार पंचमी


ब्रज में प्रकटे हैं बिहारी, जय बोलो श्री हरिदास की
भक्ति ज्ञान मिले जिनसे, जय बोलो गुरु महाराज की 

मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, पंचमी को ही हमारे वृन्दावन बिहारी श्री बांके बिहारी जी का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है. इसी दिन अप्रकट रहने वाले प्रभु साक्षात् नित्य वृन्दावन में निधिवन में प्रकट हो गए थे. तीनो लोकों के स्वामी को इस दिन रसिक सम्राट स्वामी श्री हरिदास जी महारज ने जीत लिया था और वो अपने सभी भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके सामने आ गए थे. 

स्वामी श्री हरिदास जी निधिवन के कुंजो में प्रतिदिन नित्य रास और नित्य विहार का दर्शन किया करते थे और अत्यंत सुंदर पद गया भी करते थे. वो कोई साधारण मनुष्य नहीं थे, भगवन कि प्रमुख सखी श्री ललिता सखी जी के अवतार थे. जब तक वो धरती पर रहे, उन्होंने नित्य रास में भाग लिया और प्रभु के साथ अपनी नजदीकियों का हमेशा आनंद उन्हें प्राप्त हुआ. उनके दो प्रमुख शिष्य थे. सबसे पहले थे उनके अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी जिनको स्वामी जी ने ठाकुर जी की सेवा के अधिकार दिए और आज भी वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर के सभी गोस्वामी जगन्नाथ जी के ही कुल के हैं. उनके दूसरे शिष्य थे उनके भतीजे श्री विठ्ठल विपुल देव जी. बिहार पंचमी के दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन भी होता है. 

स्वामी जी के सब शिष्य उनसे रोज आग्रह किया करते थे कि वो खुद तो रोज नित्य विहार का आनंद उठाते है कभी उन्हें भी यह सौभाग्य दें जिससे वो भी इस नित्य रास का हिस्सा बन सके. पर स्वामी जी ने कहा की सही समय आने पर उन्हें स्वतः ही इस रास का दर्शन हो जायेगा क्योंकि रास का कभी भी वर्णन नहीं किया जा सकता. इसका तो केवल दर्शन ही किया जा सकता है और वो दर्शन आपको भगवान के आलावा कोई नहीं करा सकता. स्वामी जी का एक कुञ्ज था वो जहा वो रोज साधना किया करते थे. उनके सभी शिष्य इस बात को जानने के लिए काफी व्याकुल थे कि ऐसा क्या खास है उस कुञ्ज में. एक दिन जिस दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन था, स्वामी जी ने सबको उस कुञ्ज में बुलाया. जब सब विठ्ठल विपुल देव जी के साथ उस कुञ्ज में गए तो सब एक दिव्या प्रकाश से अंधे हो गए और कुछ नज़र नहीं आया. फ़िर स्वामी जी सबको अपने साथ वह लेकर आये और सबको बिठाया. स्वामी जी प्रभु का स्मरण कर रहे थे, उनके सभी सिष्य उन का अनुसरण कर रहे थे और सबकी नज़रे उस कुञ्ज पर अटकी हुई थी और सब देखना चाहते थे कि क्या है इस कुञ्ज का राज़. तो सबके साथ स्वामी जी यह पद गाने लगे

माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे
प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रहीहै न तरिहहिं जैसें 
अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें 
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें 




स्वामी जी कि साधना शक्ति से उन दिन उन सबके सामने बांके बिहारी जी अपनी परम अह्लाद्नी शक्ति श्री राधा राणी के साथ प्रकट हो गए.

चेहरे पे मंद मंद मुस्कान, घुंघराले केश, हाथों में मुरली, पीताम्बर धारण किये हुआ जब प्रभु कि उस मूरत का दर्शन सब ने किया तो सबका क्या हाल हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. वे अपनी पलक झपकाना भी भूल गए और ऐसे बैठे हुए हैं मानो कोई शरीर नहीं बल्कि एक मूर्ति हैं. 

स्वामी जी कहते है कि देखो प्रभु प्रकट हो गए हैं. प्रभु कि शोभा ऐसी ही है जैसी घनघोर घटा कि होती है. यह युगल जोड़ी हमेशा विद्यमान रहती है. प्रकृति के कण कण में युगल सरकार विराजमान है. और ये हमेशा किशोर अवस्था में ही रहते हैं. स्वामी जी के आग्रह से प्रिय और प्रीतम एक दूसरे के अंदर लीन हो गए और फ़िर वही धरती से स्वामी जी को एक दिव्या विग्रह प्राप्त हुआ जिसमे राधा और कृष्ण दोनों का रूप है और इसी विग्रह के माध्यम से ठाकुर जी हमें श्री धाम वृन्दावन में दर्शन देते हैं. यही कारण है कि ठाकुर जी का आधा श्रृंगार पुरुष का होता है और आधा श्रृंगार स्त्री का होता है. 

यह त्यौहार श्री धाम वृन्दावन में आज भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. सुबह सबसे पहले निधिवन में प्रभु के प्राकट्य स्थल में जो भगवन में प्रतीक चरण चिन्ह है उनका पंचामृत अभिषेक किया जाता है. फ़िर एक विशाल सवारी स्वामी जी की वृन्दावन के प्रमुख बाजारों से होती हुई ठाकुर जी के मंदिर में पहुँचती हैं. स्वामी जी कि सवारी में हाथी, घोड़े, कीर्तन मंडली इत्यादि सब भाग लेते हैं. सवारी के सबसे आगे तीन रथ चलते हैं. इनमे से एक रथ में स्वामी श्री हरिदास जी, एक में गोस्वामी जगन्नाथ जी और एक रथ में विठ्ठल विपुल देव जी के चित्र विराजमान होते हैं. ये रथ रज भोग के समय ठाकुर जी के मंदिर में पहुँचते है और फ़िर तीनो रसिकों के चित्र मंदिर के अंदर ले जाये जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन ठाकुर जी हरिदास जी महाराज कि गोद में बैठकर उनके हाथों से भोग लगाते हैं. 

यदि आपको किशोरी जी इस दिन अपने धाम वृन्दावन में बुला लें तो आपका सौभाग्य है परन्तु यदि किशोरी जी नहीं भी बुलाती हैं तो मै आप सब से आग्रह करूँगा कि सुबह आप अपने घर पे ही बिहारी जी को भोग लगाये और संध्या के समय प्रभु की आरती करिये और उनके भजन में झूमते रहिये. आप पर कृपा ज़रूर बरसेगी. और आपको यह जानकार बहुत खुशी होगी कि इसी दिन भगवन श्री राम का जानकी जी के साथ विवाह भी हुआ था. इसलिए बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है.


इस वर्ष बिहार पंचमी 29 नवम्बर 2011, मंगलवार को मनाई जायेगी. 

आपको बिहारी जी के प्राकट्य उत्सव की बहुत सारी बधाई  

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Monday, November 21, 2011

Exclusive Pics Of Gwalior Katha & Upcoming Katha Schedules

 
                                                                ( Aan Kut Pooja )

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(Kalash Yatra,First Day of katha)

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(He Guru dev,un Bankhe Bihari ke Naino se to ap becha lete ho lekin Ye Apki Tirchi nain To hume Ghayal kar deti hai.. )

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आगामी कथाएँ 


परम श्रधेय आ गो श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 






१. 23 नवम्बर से 29 नवम्बर : राणी सती दादी मंदिर परिसर 
                                                 झुंझुनू, राजस्थान 

                        समय: दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक 

       (इस कथा का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)

२. 17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर : भोपाल, मध्य प्रदेश

३. 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर : कोलकाता, पश्चिम बंगाल


"" विशेष कार्यक्रम ""

२७ नवम्बर २०११
कीर्तन तत्पश्चात भोजन 
सुबह १० बजे से दोपहर १२ बजे तक 

मृदुल वृन्दावन आश्रम
 जयपुर , राजस्थान 


परम श्रधेय आ श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज 






१. 1 दिसम्बर से 7 दिसम्बर : गुना, मध्य प्रदेश

२. 9 दिसम्बर से 15 दिसम्बर : कोडरमा, झुमरीतलैया

३. 17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर : कोलकाता

४. 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर : कमला नगर, दिल्ली 
                   














सभी कथाओं को LIVE या D-LIVE देखा जा सकता है, केवल अध्यात्म चैनल पर. 
अध्यात्म चैनल को इन्टरनेट पर देखने के लिए लॉग इन करे  http://www.adhyatmtv.com/

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Saturday, November 5, 2011

Tulsi Vivah Katha And Katha Information


एक लड़की जिनका नाम वृंदा था राक्षस कुल मैं उनका जन्म हुआ था,बचपन से ही उनमें कृष्ण भक्ति के बीज की धीमी धीमी सुगंद आने लगी थी, पूरी जिन्दगी उन्होंने बड़े प्रेम भाव से प्रभु की सेवा पूजन किया,जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल रजाजलंदर से हुआ,जालंदर जल में ही जन्मा था,और वह राक्षस कुल का रजा था,लेकिन वृंदा जी इन सब से परी थी वह सिर्फ निष्टा पूर्व अपना पत्नी धरम का पालन करती थी.


शादी के कुछ समय पश्चात् देवताओ और दानव
में युद्ध हुआ,तभी वृंदा जी ने संकल्प लिया जब तक अप युद्ध से वापिस नही आजाते मैं पूजा मैं बेथ कर आपकी सलामती का अनुष्ठान करुँगी और संकल्प तब तक नही तोदुंगी जब तक अप वापिस नही आजाते,जलंदर जी युद्ध में चले गए और यह वृंदा जी ने अनुष्ठान आरंभ किया,वृंदा जी के अनुष्ठान ये प्रभाव हुआ,युद्ध में जलंदर जी को कोई देवता नही जीत सखा और हरते हुए भगवन विष्णु जी के पास गए..

सबने भगवान रख्षा की प्राथना की तो प्रभु ने कहा- वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नही कर,उसकी भक्ति सची है.
तो देवता बोले-भगवन और दूसरा कोई उपाए नजर नही अब अप ही हमारी रख्षा करे और उपाए निकले.

तभी भगवान श्री विष्णु ने जलंदर का रूप धरा और वृंदा के सन्मुख जा के खड़े होगये,वृंदा ने जेसे ही अपने पति को देखा यह अनुष्ठान से उठ गई और अपने पति के चरण छुए,जेसे ही उनका अनुष्ठान टुटा वह देवताओ ने जलंदर का सर काट के अलग कर दिया और जलंदर का कटा सर वृंदा के महेल आ गिरा,वृंदा ने देखा तो वह सोच में पड़ गई मेरे पति का सर यह है,तो मेरे सामने जो खड़े है कौन है.??
                                                                                                                          वृंदा ने पुचा- अप कौन है.?
तभी भगवन अपने असली रूप मैं अगये और कुछ न बोले परन्तु वृंदा जी सब समझ गई और तभी वृंदा ने भगवान से कहा,आपको तनिक दया नही आई मेरे पति को मरवाते,में आपको को श्राप देती हु अप पत्थर के होजाओ.प्रभु तुरंत पत्थर के बन गए,तभी देव लोक में हाहाकार मच गया,सभी देवता वृंदा जी के पास अगये लक्ष्मी जी बेहद रो रो कर विलाप करने लगी,सबकी प्राथना सुनाने के बाद वृंदा जी ने प्रभु को श्राप से मुक्त किया और पति के सर के साथ अग्नि मैं सती होगी.

उनकी राख से फिर उसी समय एक पोधा निकला उसे देख भगवान विष्णु ने कहा- अज से इसका नाम तुलसी है. और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं किसी भी वास्तु को बिना तुलसी के सवीकार नही करूँगा,यह मुझे प्राणों से भी प्यारी है,तभी से सभी देवताओ और मनुष्य ने तुलसी जी का पूजा आरंभ होगई,फिर अंत में सभी देवताओ ने कार्तिक मास की,देवउठन एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह किया जिसे अज भी हम पुरे प्रेम और श्रधा से मानते है.और इस दिन जो व्यक्ति तुलसी विवाह कथा सुनता या पड़ता उसे अजीवन भक्ति का वरदान मिलता है.

सोभाग्य की बात है व्हे दिन अज है अप सभी को हम सबकी और गुरुवर की और से तुलसी विवाह की बहुत बहुत बधाई..
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Bade Guruji's katha live telecast only on adhyatm tv
Date-7 nov to 13 nov:
Location-theme park, kurukshetra
Timing-2:00 pm to 6:00 pm
organiser: shri bankey bihari seva trust

or

Date-23 nov to 29 nov
Location-Rani sati dadi mandir, jhunjhunu, rajasthan
Timing-2:00 pm to 6:00 pm
organiser-shri bhagwat mission trust

Chote Guru Gwalior katha detail


Date-8 nov to 14 nov
Timing - 12 to 4 noon
Location- Suresh nagar,tukoniya park ke pas,shiv mandir,tathipur,gwalior (M.P)
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Tuesday, November 1, 2011

गोपाष्टमी एवं अक्षय नवमी

जो प्रणत होए मेरे ठाकुर को 
वा करे विपिन को वास
और दीप जलें आनंद मिले 
ऐसो या कार्तिक मास 


पद्मपुराण और स्कन्दपुराण में श्री बांके बिहारी जी महाराज ने स्वयं कार्तिक के पवित्र मास के महात्म का बहुत ही सुंदर ढंग से विस्तार किया है. उन्होंने कहा है कि जो एक बार इस मास में ल्रभु को प्रणत हो जाता है, उसे प्रभु हमेशा अपने चरणों का दास बना लेते हैं. वैसे तो इस मास में भक्त अनेक नियम, व्रत आदि लेते हैं, परन्तु पद्मपुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कार्तिक मास में केवल सूर्योदय से पहले स्नान कर ले तो उसे प्रत्येक तीर्थ में स्नान करने का फल प्राप्त होता है. प्रभु ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं कार्तिक मास में ही की थीं. पूज्य गुरुदेव से हम सब ने उखल बंधन लीला का प्रसंग सुना है. तो उखल बंधन लीला कार्तिक के इसी पवित्र मास में हुई थी. परभू माँ के प्रेम के बंधन में बांध गए थे. इसलिए इसे दामोदर मास भी कहा जाता है और ब्रज वासी ऐसा मानते है कि जो इस मास में प्रभु कि भक्ति करता है तो बिहारी जी उसके प्रेम के बंधन में भी बांध जाते हैं और यदि कोई शक्ति भगवन को बांध सकती है तो वेह है केवल भक्तो के आंसुओ कि धारा. 

कार्तिक के इस पवित्र मास में प्रभु ने एक और भी बड़ी सुंदर लीला की थी. हम सब जानते है कि प्रभु को गौएँ बहुत प्रिय है. तो भक्तों हमारे कन्हैया कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पहली बार गौएँ चराने के लिए गौ चारण वन गए थे और उन्होंने वहाँ अपनी मुरली से गौओं को भी सम्मोहित कर दिया था. और इसी दिन को हमारे ब्रज में गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है. 

गोपाष्टमी के ठीक अगले दिन अर्थार्थ कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है. हमारे शास्त्रों ऐसा लिखा हुआ है कि त्रेता युग इसी दिन से प्रारंभ हुआ था. और इसी दिन सूर्य नारायण ने माँ दुर्गा कि उपासना की और उन्होंने माँ ने असंख्य उपहार भेंट में दिए जिन्हें हम आज सौर उर्जा के रूप में प्रयोग कर रहे हैं. अक्षय नवमी के दिन भक्त लोग मथुरा-वृन्दावन कि युगल परिक्रमा लगाते हैं. सूर्योदय के पूर्व उठकर सभी भक्त एवं रसिक श्री यमुना जी का स्नान करके परिक्रमा प्रारंभ करते हैं और ब्रज रज को अपने मस्तक से लगाकर नंगे पाँव संध्या तक परिक्रमा पूर्ण करके उसे बिहारी जी के श्री चरणों में समर्पित करते हैं. ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने का एक अर्थ यह भी है कि आप आपने लिए मुक्ति के द्वार खोल रहे हैं क्यूंकि जब मुक्ति ने अपनी मुक्ति पूछी थी प्रभु से तो भगवन ने उसे भी यही कहा था कि ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने से मुक्ति भी मुक्त हो जाती है.

वृन्दावन कि गलिन में मुक्ति पड़े बिलखाये
मुक्ति कहे गोपाल सों तू मेरी मुक्ति बताये 
पड़ी रह्यो या गलियों में यहाँ पंथी आवे जाएँ 
ब्रज-रज उड़ मस्तक लगे, तो मुक्ति मुक्त है जाये 


तो भक्त जन इसी ब्रज-रज को अपने मस्तक पर लगाये हुए श्री धाम वृन्दावन के सभी प्रमुख स्थानों के दर्शन करते हुए मधु पूरी मथुरा में प्रवेश करते हैं. मथुरा में भी सर्व-प्रथम सब विश्राम-घाट पे यमुना जी का स्नान करते हैं और फ़िर मथुरा में मंदिरों के दर्शन करते हैं. अंत में जब सब ब्रज-रज से अपने शरीर को सुसज्जित कर लेते है, ब्रज-रज से अपना श्रृंगार करते हैं और वृन्दावन लौटते हैं और बाँके बिहारी जी को अपनी यात्रा समर्पित हैं. वैसे तो इस प्रथा के लिए अत्यंत बल और सहन शक्ति कि आवश्यकता होनी चाहिए परन्तु ऐसा देखा गया है कि मेरे ठाकुर जी कि कृपा से कमज़ोर दिखने वाले भक्त भी इस परिक्रमा को बड़ी सरलता से सम्पुर्ण कर लेते हैं. 

भगवान के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने सब भक्तों को यह सौभाग्य दें कि वे वृन्दावन में आकर परिक्रमा लगाये. परन्तु यदि आप प्रभु को याद करते रहोगे तो भगवान भी आपके प्रेम से विवश होकर आपको बुला ही लेंगे. और जब तक प्रभु न बुलाए तब तक का इंतजाम हमारे पूज्य छोटे गुरुदेव श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी ने कर ही रखा है. आप सब मानसिक परिक्रमा गुरुदेव के साथ राधे नाम का आश्रय लेकर लगाएं और मन में यही भाव रखें कि कभी हमें यह सौभाग्य भी मिले कि हम श्री धाम में जाकर इस परिक्रमा को करें. 

आप सब पर राधा राणी अपनी दया बनाये रखे

गुरुदेव का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे 

प्रेम से कहिये 
श्री राधे ! श्री राधे !! श्री राधे !! श्री राधे ! श्री राधे 



Sunday, October 23, 2011

महापर्व दीपावली

आपके जीवन में बरसे धन और खुशहाली
मुबारक हो आपको इस वर्ष की दिवाली
कोई न हो दुखी, हो सिर्फ खुशियों का प्रचार
ज्ञान के प्रकाश से जगमग हो उठे यह संसार


कार्तिक मास हिंदू वैष्णव धर्म में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मास माना गया है. यही कारण है कि इस मास को दामोदर मास भी कहा जाता है. कार्तिक का महीना है ज्ञान बाँटने का और ज्ञान बटोरने का. इसीलिए इस मास में प्रत्येक मंदिर में दिए जलाये जाते है. घरों को भी प्रकाशमय किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार यह दिए अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाते हैं, उसी प्रकार हमें हमारे भीतर भी ज्ञान के दीप प्रज्वलित करने है जो अज्ञान के अन्धकार को दूर करेंगे.

कार्तिक के पवित्र मास में अनेक त्यौहार एवं पर्व आते हैं. करवा चौथ, होई अष्टमी इत्यादि अनेक शुभ दिन आते हैं. और इसी मास अमावस्या को होता है वर्ष का सबसे बड़ा पर्व दीपावली.

इस समय को दीपावली पंच पर्व भी कहा जाता है क्यूंकि यह लगातार पांच दिन तक चलने वाला त्यौहार है. धनतेरस से प्रारंभ होकर भाई दूज तक दीपावली का ही उत्साह और उमंड देखने को मिलता है. त्रेता युग में भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर दीपावली के दिन अयोध्या में पधारे थे. तभी से इस दिन को खुशी के प्रतीक स्वरुप मनाया जाता है. जैसे उस समय सभी अयोध्या वासियों ने घी के दिए जलाकर अपने प्रभु श्री राम का स्वागत किया था, आज भी सब लोग दिए जलाकर अपनी खुशी का इज़हार करते हैं. देखा जाये तो यह त्यौहार अमावस्या को मनाया जाता है, परन्तु दीपावली की रात पूर्णिमा की रात से भी अधिक प्रकाशमय होती है. इस दिन महा लक्ष्मी एवं गजानन भगवन कि पूजा का विधान है. महा लक्ष्मी हमारे व्यापर में वृद्धि करती है, हमारे खजाने भरती है और खुशियाँ बांटती हुई हमारे घर में प्रवेश करती हैं, तो दूसरी ओर गणेश भगवान हमें रिद्धि सिद्धि देते हैं.

परन्तु मुझे यह कहते हुए बड़ा अफ़सोस हो रहा है कि दीपावली जैसे शुभ पर्व को हमारे समाज के कुछ लोग शराब और जुए इत्यादि से नष्ट कर देते है. इसकी पवित्रता को कलंकित कर दिया जाता है और हर्ष-उल्लास का वातावरण कलह और झगडों का वातावरण बन जाता है. मुझे यह विश्वास है कि हमारा कोई भी पाठक इन व्यसनो में अपने जीवन को बर्बाद नहीं करता, परन्तु यदि आपके आस पास कोई ऐसा व्यक्ति है जो दीपावली कि शुद्धता को दूषित करता हो, तो कृपया उसे समझाने का प्रयास अवश्य करें. अपने घर में तो सब रौशनी करते है, परन्तु यदि आप किसी दूसरे के जीवन में ज्ञान का संचार करके उसके जीवन को प्रकाशमय करते हैं, तो वास्तविकता में आप दीपावली कि सार्थकता को सिद्ध कर देंगे. इस दिवाली को आप सब यह प्राण लें कि हम केवल अपनी मेहनत और सद्कर्मो से ही कमाएंगे और अपने दीपक जलाने के लिए किसी दूसरे के घर के चिराग को नहीं बुझने देंगे अपितु हर अँधेरे घर और जीवन को प्रकाशित करने का यथा संभव प्रयास करेंगे.

धन खूब कम आनंद माना पर दंगे और फसाद न कर
अपना घरबार बसाने को, औरों का घर बर्बाद न कर

आप सबको हम सबकी ओर से दीपावली पंच पर्व कि हार्दिक शुभकामनाएं. यह त्यौहार आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो बस यही हमारी कामना है. आप सब इसी प्रकार मुस्कुराते रहें, खुश रहें और हमें भी अपना प्यार देते रहें.

पूज्य बड़े गुरुदेव श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज और पूज्य छोटे गुरुदेव श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज की ओर से भी आप सबको बहुत सारा आशीर्वाद. महा लक्ष्मी और गजानन भगवन आप सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें.

.....राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे.....
The 5 Days of Diwali : The festival of Lights
Day 1: Dhanteras
Commemorates the birth of Dhanvantari (the physician of the Gods). Goddess Lakshmi is being worshiped for prosperity and well-being. Many Indian businesses start their accounting year on this day.
Day 2: Choti Diwali (Kali Chaudas)
Also known as Small Diwali. Devil Narakasura was killed by Krishna.
Day 3: Diwali & Lakshmi Puja
Commemorates the return of Lord Rama (King of Ayodhya) to his hometown from 14 years of exile in the forest, after defeating the evil king Ravana of Lanka. Goddess Lakshmi emerged from Kshira Sagara (Ocean of Milk). Lakshmi Pooja is performed on this day.
Day 4: Govardhan Puja (Annakoot)
Celebrates the victory of Krishna over Indra, the deity of thunder and rain, by lifting Govardhana Hill with his little finger to save people from the floods. This day is also known as Annakoot (mountain of food).
Day 5: Bhai Dhooj
Sisters pray for well-being of their brothers and put a mark on their foreheads. Brothers give gifts to their sisters in return.
..... राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे.....

Sunday, October 16, 2011

Upcoming Katha Schedules

वंशी-वट सो वट नहीं, नहीं नन्द गाम सो गाम 
वृन्दावन सो वन नहीं, नहीं कृष्ण नाम सो नाम 

हम सबकी  एक आदरणीय साथी ने जब शरद पूर्णिमा के अवसर पर बांके बिहारी जी का सुंदर रूप देखा तो अपने ह्रदय के भावों को व्यक्त किये बिना ना रह सकीं. उन्होंने सोचा कि चाँद तो रोज आता है, आकार मुस्कुराता भी है, वह समझता था कि मै ही सुंदर हूँ, पर जब शरद पूर्णिमा के दिन उसे बिहारी जी के दर्शन हुए तो उसे समझ में आया कि सुंदरता क्या होती है. जी हाँ बंधुओं, प्रभु कि झांकी सुंदर नहीं है, वह तो सुंदरता है. 

चाँद तो बिहारी जी कि पोषक में लगे एक हीरे कि बराबरी भी नहीं कर सकता. उसने भगवन को लाखों बार धन्यवाद किया होगा कि हे प्रभु! आपकी कृपा है ये तो जो आप अपने दर्शन हर किसी को हर जगह नहीं कराते, नहीं तो अगर आसमान में आप नज़र आते तो मेरी पूजा कौन करता ?

आगामी कथाएं 
कथा व्यास : श्रधेय आ. मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 

1. 31 अक्टूबर से 6 नवम्बर : हाथरस, उत्तर प्रदेश

2. 7 नवम्बर से 14 नवम्बर : कुरुक्षेत्र, हरयाणा

3. 16 नवम्बर से 22 नवम्बर : श्योपुर, मध्य प्रदेश

१०८ श्रीमद भागवत कथा 
श्री राणी सती दादी मंदिर परिसर 
झुंझुनू, राजस्थान 
"कार्यक्रम"
23 नवम्बर से 29 नवम्बर 
समय दोपहर 2 बजे से सांय 6 बजे तक 





















कथा व्यास : श्रधेय आ. गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज 


1. 30 अक्टूबर से 5 नवम्बर : बरेली, उत्तर प्रदेश

2. 8 नवम्बर से 14 नवम्बर : ग्वालियर, मध्य प्रदेश 


3. 16 नवम्बर से 22 नवम्बर : सूर्य नगर, दिल्ली

Tuesday, October 11, 2011

Shard Purnima Ki Bahut Badhai

जेसे की अप सभी जानते है अज वृन्दावन में बड़े गुरु देव और छोटे गुरु देव का अंग्मन और भजन संध्या है अप सभी भक्तो को इस पवन शरद पूर्णिमा की बहुत बहुत बधाई॥

Program Telecast
Date-11-10-2011
live on adhyatma Tv at 5.00 pm

SpeciaL TelecasT
Date-11-10-201
1
Astha channel at 9.30 pm

राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे~राधे

Monday, September 26, 2011

शरद पूर्णिमा

गुलाब मुहब्बत का पैगाम नहीं होता 
चाँद चांदनी का प्यार सरे आम नहीं होता 
प्यार होता है मन कि निर्मल भावनाओं से
वर्ना यूँ ही राधा-कृष्ण का नाम नहीं होता

जब जब कोई भी भक्त भगवन कृष्ण और उनके नामों के बारे में सोचता है, तो उसके हृदय में सबसे पहला नाम आता है रास-रचैया. जी हाँ बंधुओ, हमारे कान्हा ने रास के माध्यम से जो प्रेम का सबक मानव जाति को सिखाया था उसकी वाकई में कोई मिसाल नहीं है. 
आश्विन मास कि पूर्णिमा को भगवन ने अनन्त रूप धारण कर हर गोपी के साथ नृत्य किया था और इसी पूर्णिमा को हम लोग ,महारास कहते हैं. 
पूरे वर्ष में केवल इसी दिन, वृन्दावन के श्री बांके बिहारी मंदिर में प्रभु के हाथों में मुरली शोभायेमान होती है. इस दिन के दर्शनों का विशेष महत्व है हर भक्त के जीवन में. इस दिन प्रभु कि झांकी श्वेत रंग में ढकी हुई होती है. अन्य और भी अनेक बदलाव देखे जा सकते है. यदि आप पर मेरी किशोरी जी कि कृपा होती है और वो आपको इस पवन दिन श्री धाम वृन्दावन में बुलाती है, तो आप इन बदली हुई बातों को देखे और हमें बताएं.

इस दिन लोग खीर बना कर चांदनी के नीचे रखते है और प्रातः उसे प्रशाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, क्यूंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन चांदनी प्रभु के चरण स्पर्श करती है और वही चांदनी जब हमारी खीर को स्पर्श करेगी तो भगवान हमारी खीर का भोग भी लगा लेंगे.

आप सब भक्तों के लिए शरद पूर्णिमा के अवसर पर एक और भी खुश खबर है. परम पूज्य गुरुदेव श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महारज की अध्यक्षता में शरद पूर्णिमा महोत्सव श्री निधिवन में बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जा रहा है. आप सबको पूज्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज कि अनुपम वाणी में भजन संध्या का लाभ भी प्राप्त होगा. इस आयोजन की संपूर्ण जानकारी नीचे दी जा रही है.


Wednesday, September 21, 2011

Exclusive Pics of Jhansi Katha and Guru_Vanni or Katha Telicast

राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधेराधे
राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे

राधे ~राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधेहमारे गुरुदेव ने झाँसी में भगवत रूपी कथा से एसा आनंद बरसाया की कथा के अंत तक हर भक्त के मुख पे सिर्फ यही आरजू थी गुरु देव अगली बार जल्द आना, हर मन बस बस यही खे रहा था हरी की कथा सुनाने वाले तुमको लाखो परनाम और हर भक्त के मन में बस राधे नाम की झड़ी लगी थी और आंखे बंद करते ही उस बाखे बिहारी की मुस्कुराते हुई छवि सामने थी क्या रंग बरस रहा था ये एक श्रधा से कथा सुनाने वाला भक्त ही समझ सकता है..
तुम्हारी इस तिरछी नैनो पे बलिहार मेरे गुरुवर
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Guru_Vanni

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Watch Special Telicast Of Shrimad Bhagwat Katha

By Pujya Shri Mridul Krishna shastri Ji Maharaj
Venue : Dilshad Garden, Delhi
Date : 22 Sep To 28 Sep 2011
Time : 08.00 PM To 11.00 Pm
on Adhyatm Tv


राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे राधे~राधे

Saturday, September 17, 2011

Upcoming Programmes and Upcoming Publications

गिला आपसे नहीं कोई
गिला हम अपनी मजबूरियों से करते हैं
आप आज हमारे करीब नहीं तो ना सही
मुहब्बत तो हम आपकी दूरियों से भी करते हैं



लगभग ३ महीने बीत गए परम पूज्य गुरुदेव को यहाँ से गए हुए. यह दिन सिर्फ उनकी यादों के सहारे ही तो काटे हैं हम सबने. बस उनकी सुमधुर आवाज़ कानों में पद जाया करती थी और यह दिल सिर्फ यही इन्तेज़ार करता रहता था की गुरुदेव कब वापस अपने देश में पधारे. पर अब वो दिन ज्यादा दूर नहीं हैं. आप सब को जान कर बेहद खुशी होगी की गुरूजी इस महीने की १९ तारिख को अपने भक्तों के पास, अपने प्रभो के पास और अपने देश वापस आ रहे है. आइये हम सब मिलकर पूज्य गुरुदेव का स्वागत करें. हम उन्हें लेने के लिए तो नहीं जा सकते, पर घर बैठे ही उन्हें एक बार बताना ज़रूर की हे! गुरुवर आपके ये दस आपके इंतज़ार में बैठे थे. और ये मेरा विश्वास है की यदि आपके वचनों में सच्चाई और श्रध्दा होगी, तो गुरुदेव ज़रूर आपकी बात को सुनेंगे. 

बात केवल यहीं पे खत्म नहीं होती, दिल्ली वालों के लिए तो एक बहुत ही बड़ी खुश खबरी है. सदगुरुदेव दिल्ली के दिलशाद गार्डन में अपनी कथा का आयोजन कर रहे हैं जिसकी संपूर्ण जानकारी ऊपर दिए गए इश्तिहार में है. आप सबको कथा अमृत की बहुत बहुत बधाई.
" इस कथा का सीधा प्रसारण अध्यात्म चैनल पर आयेगा "

आपकी दुआ से काबिल बने है हम 
एहसानों का मोल कैसे चुका सकते है
बस अपना आशीर्वाद बनाये रखना आप
फ़िर तो आसमां को भी झुका सकते हैं







Saturday, September 10, 2011

चले अध्यात्म की ओर



आप सब भक्तों के लिए एक बहुत ही खुशी की खबर मई आज यहाँ आपको बताने जा रहा हू. आप सबको जान कर यह बेहद खुशी होगी की परम पूज्य गुरुदेव ने अपना निजी टीवी चैनल लॉन्च कर दिया है. चैनल का नाम है
"अध्यात्म - चलें आनंद की ओर". 


जैसा की आप सब जानते है कि परम पूज्य गुरुदेव अपने भक्तो से बेहद प्यार करते है और सदा उनकी खुशी को ही अपनी खुशी मानते है. तो अपने सब भक्तो का ध्यान रखते हुए ही गुरूजी ने यह कदम उठाया है और हम सबको यह सौभाग्य प्रदान किया है कि जो कथा अब तक केवल समय समय पर ही आया करती थी, वेह कथा एवं गुरूजी कि मधुर वाणी आप सब तक अधिक मात्रा में पहुचे और आप सब उसका आनंद उठा सके. पूज्य महाराज श्री जी ने भक्ति और भगवत प्रचार के लिए इस चैनल का निर्माण किया और हम सब जीवों को अनुगृहित किया.

बंधुओ, एक बात सोच कर मै बड़ा गंभीर हो गया कि परम पूज्य गुरुदेव हमारे लिए इतना सब कुछ करते है पर हम उनके लिए क्या कर रहे है. हम सब चाहते है कि हम जो परमात्मा से प्रेम कर रहे है उसका प्रतिउत्तर हमें उससे मिले, तो हम लोग गुरुदेव को उनके स्नेह का क्या प्रतिउत्तर दे रहे है. देखिये वो हमसे हमारा रुपया, धन आदि नहीं चाहते, वो तो केवल इतना चाहते है कि जिन भक्तो को वो एक पिता कि भांति प्यार कर रहे है, उनके वे भक्त कभी उन्हें धोखा न दे और कभी प्रभु के मार्ग को न छोड़े.

मै आज यहाँ आपको शिक्षा देने के लिए नहीं लिख रहा हू, बल्कि ये जानकारी तो उनके चैनल कि है. आप सब जल्द से जल्द अपने केबल वाले से संपर्क करे और गुरूजी के इस प्रसाद का भोग आरम्भ करे.


The Technical Details of the Channel are 
FREQUENCY INTELSAT-10, D/L FREQUENCY=3752 MHz, SR-9300 ksps, FE-3/4, DVBS-2, SK, MPEG-4

For any more details, you can log on to the official website of this channel "www.adhyatmtv.com"

आप सबको एक बार फिर हार्दिक बधाई

II राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे II 

Monday, September 5, 2011

RADHA-ASHTAMI AND SWAMI HARIDAS JAYANTI


किशोरी सुंदर श्यामा तू ही सरकार मेरी है
नहीं है औरन से मतलब, तू ही एक आस मेरी है
किशोरी सुंदर श्यामा, मुझे विरह ने घेरी है
दर्शन देके कृपा कीजो, अब कहे की देरी है

आप सब भक्तों को हमारी तरफ से राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामना. रास रासेश्वरी हमारी राधे जू आज भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को ही बरसना धाम में श्री वृषभानु जी के यहाँ प्रकट हुई. बरसना धाम में श्री जी के मंदिर को विशेष रूप से सजाया जाता है और राधारानी का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है. ब्रज भूमि में जिस उमंग से जन्माष्टमी मनाई जाती है उसी उमंग से राधा अष्टमी भी मनाई जाती है. 

आज का दिन केवल इसलिए खास नहीं है कि आज राधा अष्टमी है, बल्कि आज एक और विशेष दिन है. आप सब स्वामी हरिदास जी को तो जानते ही हो. तानसेन और बैजू बावरा के संगीत गुरु एवं श्री बनके बिहारी जी को ब्रज में लेन वाले श्री हरिदास जी महाराज का जन्मदिन भी आज ही के दिन हुआ था. इसलिए ब्रज भूमि में यह अष्टमी एक अति विशिष्ट दिन है. क्युकी आज भक्त और भगवान दोनों का ही प्राकट्य धरती पर हुआ था. 

आज के दिन निधिवन और श्री बाँके बिहारी मंदिर को वृन्दावन में सजाया जाता है, और सुबह दोपहर में रोज़ कि तरह दर्शन के पश्चात्, श्री बनके बिहारी जी के आँगन में रास लीला का मंचन किया जाता है. पूरे वर्ष केवल यही एक दिन है जब यहाँ रास लीला का दर्शन भक्त कर सकते है. आज श्री बनके बिहारी मंदिर से निधिवन तक एक जुलुस भी निकला जाता है जिसे ब्रजवासी समाज गायन कहते है. इस समाज गायन में भक्त अपनी अपनी भजन मण्डली बनाकर प्रभु के नाम का आश्रय लेकर स्वामी श्री हरिदास जी को रिझाते है. इस समाज गायन में बिहारी जी स्वामी हरिदास जी के लिए प्रसाद के रूप में अनेक उपहार भेजते है जिन्हें भक्त ले जाकर हरिदास जी कि समाधी पर चढ़ा देते है. फिर निधिवन में भी रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन होता है और पूरे वर्ष में केवल इसी दिन भक्त देर तक निधिवन में रुक सकते है नहीं तो ये स्थान सूर्यास्त से पहले ही बंद हो जाता है क्युकी ऐसी मान्यता है कि यहाँ आज भी प्रभु और राधा रानी रास रचाने आते है. इस दिन कि रास लीला कि तर्ज वेणी-गुथन लीला है अर्थार्थ भगवान राधा रानी कि छोटी बना रहे है और उन्हें कह रहे है कि हे किशोरी! पूरी धरती पर मुझसे अच्छी वेणी कोई नहीं गूँथ सकता, और जिस प्रकार फूल तुम्हारे बालो में मै लगा दूंगा उस तरह कोई नहीं लगा सकता. जब राधा जी मन जाती है तो प्रभु ने आज ही के दिन राधा रानी का पूरा श्रृंगार अपने हाथों से किया है. येही स्वामी श्री हरिदास जी का भाव है. 

केवल इतना ही नहीं आज हरिदास जी महाराज कि जयंती के उपलक्ष्य में संगीत समारोह का भी आयोजन किया जाता है जिसमे दूर दूर से भक्त अपनी कला का प्रदर्शन करते है और उन्हें कला रत्ना सम्मान से पुरस्कृत भी किया जाता है. 


आप सब भक्तो को परम पूज्य गुरुदेव श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महारज कि ओर से राधा अष्टमी और स्वामी श्री हरिदास जयंती कि हार्दिक बधाई एवं ढेर सारा आशीर्वाद



आप सब भक्तो को परम पूज्य गुरुदेव श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महारज कि ओर से राधा अष्टमी और स्वामी श्री हरिदास जयंती कि हार्दिक बधाई एवं ढेर सारा आशीर्वाद