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Tuesday, June 26, 2012

गुरु पूर्णिमा महोत्सव

कर्ता करे न कर सके पर गुरु किये सब होए
सात द्वीप नौ खंड में, गुरु से बड़ा न कोए
मै तो सात समुद्र की मसीह करूँ, और लिखने सब वन राय 
सब धरती कागज करूँ पर, गुरु गुण लिखा न जाये


सच बंधुओ, किसी ने बड़ा ही सुंदर कहा है कि "सात द्वीप नौ खंड में, गुरु से बड़ा न कोए". गुरु का स्थान हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है. हम संसारी जीवों कि बात ही क्या करें, जब स्वयं प्रभु रूप धारण करते हैं, चाहे वो राम रूप हो या श्याम रूप, उन्हें भी गुरु धारण करने ही पड़ते है. भगवान कहते हैं कि वो हर जगह व्यक्तिगत रूप से हाज़िर नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने गुरु को बनाया जो भक्तों का परमात्मा के साथ सम्बन्ध जोड़ सके. भक्त और भगवान इस भव सागर के दो किनारे हैं और इन दो किनारों को जोड़ने का काम गुरुदेव का होता है. हम ये बात बड़े ध्यान से समझे कि गुरु भगवन नहीं होते और जो ये कहे कि मै भगवन हूँ, वो गुरु भी नहीं है. पर ये बात भी सत्य है कि गुरु यदि इश्वर नहीं हैं तो वो व्यक्ति भी नहीं हैं, गुरु तो केवल परमात्मा कि अभिव्यक्ति हैं. प्रभु ने अपना प्रतिनिधि बनाकर गुरु को अपने भक्तों के बीच में भेजा है. 

जो बात दवा से बन न सकी, वो बात दुआ से होती है
होती है कृपा जब सद्गुरु की, तो बात खुदा से होती है


हमारे माता-पिता हमारे जीवन के आधार हैं. ये जीवन उन्ही कि देन है. हम चाह कर भी उनका यह क़र्ज़ नहीं अदा कर सकते. हमारे माता-पिता हमें संस्कार देते हैं, हमारे जीवन की रह दिखाते हैं परन्तु उस रह को रौशन गुरुदेव करते हैं. हमें मंजिल का परिचय को माता-पिता देते हैं, पर उस मंजिल तक हमारे सूत्रधार गुरुदेव होते हैं. इसलिए हमारे माता-पिता गुरु तुल्य हैं और गुरु माता-पिता तुल्य हैं. इन तीनो का स्थान कोई नहीं ले सकता. इनका जीवन में होना परम आवश्यक है. 

जनम के दाता मात-पिता हैं, आप कर्म के दाता हैं
आप मिलाते हैं इश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं,
दुखिया मन को, रोगी तन को, मिलता है आराम आपके चरणों में
हे! गुरुदेव प्रणाम आपके चरणों में 

एक बात और बड़ी महत्वपूर्ण हमारे समझने योग्य है कि आज के कलयुग में गुरु को तो सब मानते हैं, पर गुरु की कोई नहीं मानता. सब यहो सोच कर खुश हो जाते हैं कि यदि हमने गुरुदेव के चरण पकड़ लिए, उनका आश्रय ले लिया तो हमारे ऊपर गुरु की कृपा हो गयी. परन्तु ऐसा नहीं होता. यदि कृपा होनी हो तो केवल आंख के इशारे में हो जाती है और यदि नहीं होनी हो तो चाहे पूरी जिंदगी चरण पकड़ के बैठे रहिये. और कृपा भी उसी पर होती है जो केवल गुरु को नहीं मानता, गुरु की भी मानता है. श्रद्धा और विश्वास का होना अत्यावश्यक है. इस विकत ज़माने में हमें बहुत से लोग मिलेंगे जो हमारे गुरु के बारे में गलत विचारधारा रखते हैं और वो हमें भी भटकाने का प्रयास करते हैं. वास्तव में वो कन्हैया के दूत होते हैं जो हमारी परीक्षा लेने आते हैं. हमें इस बात का ख्याल रखना है कि हम जिस गुरु को माने, पूर्ण समर्पण के साथ उनके हो जाएँ तभी गुरु आश्रय में सुकून और शांति का अनुभव हो सकेगा. और यह बात भी एक दम सच है, बल्कि ये कहूँ कि ये मेरी आप बीती बात है कि जिस दिन जीवन में गुरूजी का आगमन हो जाता है, उस दिन के बाद कामयाबी और खुशियाँ हमारे इर्द-गिर्द घूमती हैं. इसलिए कितना सुंदर कहा गया है

गुरुदेव के नाम से ये दुनिया चली है
गुरुदेव के रंग में ये दुनिया रंगी गई
और जिस शिष्य पे हो जाये गुरुदेव की कृपा
उसकी झोली फ़िर सदा खुशियों से भरी है

जैसा कि लेख के प्रारंभ में मैंने लिखा था कि गुरु गुण अनंत हैं और उनका बखान सरस्वती और सहस्त्र शेष नाग भी नहीं कर सकते और मुझ दीन के पास ऐसे शब्द कहाँ जो गुरूजी कि चर्चा कर सकें. हमारे गुरुदेव हमारे लिए बहुत कुछ करते हैं, तो उनका आभार प्रकट करने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए संतों ने एक दिन निश्चित किया है. आषाढ पूर्णिमा, जिसे हम गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं, गुरुदेव के सम्मान का दिन है. वैसे गुरुदेव का सम्मान हर पल होना चाहिए पर गुरु पूर्णिमा विशेष रूप से गुरुदेव को समर्पित एक शुभ तिथि है. इस वर्ष गुरु पूर्णिमा ३ जुलाई को मनाई जायेगी. 

गुरु पूर्णिमा का त्यौहार हमारे वृन्दावन में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है. इस दिन हमारे अनन्य रसिक नृपति स्वम्क श्री हरिदास जी महाराज के अनुज श्री जगन्नाथ गोस्वामी जी का जन्मोत्सव भी होता है. पूरे वर्ष में केवल गुरु पूर्णिमा को श्री निधिवन राज में फूल बंगला बनाया जाता है. आप सबको जानकार बेहद खुशी होगी कि जगनाथ गोस्वामी जी के साथ साथ उन्ही के वंशज, हमारे पूज्य महाराज श्री, आचार्य गो० श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज का शुभ आगमन भी इस दुनिया में गुरु पूर्णिमा के दिन ही हुआ था. 


इसी उपलक्ष्य में, हर साल कि भांति इस वर्ष भी जन्म दिवस एवं गुरु पूर्णिमा महोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ राधा स्नेह बिहारी मंदिर वृन्दावन में मनाया जा रहा है. 

आचार्य श्रधेय मृदुल कृष्ण जी महाराज एवं श्रधेय गौरव कृष्ण जी महाराज  
के पावन सानिध्य में गुरु पूर्णिमा महोत्सव मंगलवार, ३ जुलाई, २०१२ को प्रातः ०९:०० बजे से मनाया जायेगा. 

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर पूज्य बड़े गुरुदेव एवं छोटे गुरुदेव जी के आशीर्वचन एवं सत्संग का लाभ भी प्राप्त होगा. आप सभी शिष्य एवं भक्त सपरिवार सादर आमंत्रित हैं. 

इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर

विशेष सूचना: जो शिष्य पूज्य गुरुदेव से दीक्षा मंत्र लेना चाहते हैं, वो २ जुलाई को प्रातः स्नेह बिहारी मंदिर में अपना नाम व पता देकर बुकिंग करा लें. दीक्षा केवल २ जुलाई को ही दी जायेगी, अतः सम्बंधित अधिकारीयों से जल्द से जल्द संपर्क करें. 

श्री कपिल चौधरी जी, श्री प्रिंस वर्मा जी और मै स्वयं अंशु गुप्ता, राधा राणी कि असीम कृपा से गुरु पूर्णिमा उत्सव में उपस्थित रहेंगे. किसी भी सहायता के लिए निसंकोच आप हमें संपर्क कर सकते हैं. हमारी ओर से आप सबको गुरु पूर्णिमा के हार्दिक बधाई. अंत में इन्ही शब्दों के साथ कलम को विराम देना चाहूँगा

आपकी नज़रें पड़ी तो कमल हो गए
आपकी बात करी तो गज़ल हो गए
हमारी हालत तो थी जैसे टूटा मकान
पर गुरुदेव आपका साथ मिला तो महल हो गए


Sunday, June 17, 2012

कहानी खाटू वाले श्याम बाबा की


बाबा श्याम को ये दिल नज़र कर चुकी हूँ
और बदले में उसके मै दर्द ले चुकी हूँ
वो तारे न तारे समझ उनकी अपनी
गुनाहों कि अपने खबर दे चुकी हूँ
है दावा अदालत में दीवानगी का
ज़मानत में दिल और जिगर दे चुकी हूँ
वो आयें न आयें समझ उनकी अपनी
मै मरने कि अपने खबर दे चुकी हूँ

इस कलयुग में हमारे ठाकुर जी कि पूजा तो होती है और साथ में उनका एक और रूप है जो देश-देशांतर में बहुत ही श्रधा भावना के साथ पूजा जाता है. वो रूप है हमारे खाटू श्याम जी का, लखदातार का, शीश के दानी का, हारे के सहारे का और बाबा श्याम प्यारे का. अपने इस लेख में मै बताना चाहता हूँ कि इन खाटू श्याम जी ने ऐसा क्या किया जो उन्हें प्रभु ने अपने नाम ही दान दे दिया. 

ये द्वापर युग में महाभारत के समय कि बात है, एक वीर बालक था जिसका नाम था बर्बरीक. वो इतना वीर था कि स्वयं सरस्वती और शेष नाग भी उसकी वीरता का बखान करने में असमर्थ थे. तो हमारे मुरली बजैया कृष्ण कन्हैया ने उस बालक की परीक्षा लेनी चाही. वो उस बालक के समक्ष गए और उसे कहा कि यदि तुम वीर हो तो अपनी वीरता का प्रमाण दो. अब ठाकुर जी यदि परीक्षा ले रहे हो तो कौन पीछे हटेगा और बर्बरीक तो स्वयं कृष्ण प्रेम में दीवाने थे. उन्होंने ठाकुर जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. तो द्वारिकाधीश उन्हें एक पीपल के पेड़ के पास लेके गए और कहा कि तुम एक ही बाण से इस वृक्ष के सारे पत्तों में छेद कर दो और कृष्ण जी ने चुपके से उस पेड़ का एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया. बर्बरीक ने अपना बाण धनुष पे चढ़ाया और ठाकुर जी चरणों का स्मरण करके उसे वृक्ष की ओर छोड़ दिया. उस बाण ने वृक्ष के सारे पत्तों में छेद कर दिया और उसके बाद वो ठाकुर जी के चरणों के इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगा. भगवन श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि इस बाण को दूर करो ये मुझे चोट पहुंचा देगा, तो बर्बरीक ने कहा कि हे प्रभु, आप अपना पैर उस पत्ते के ऊपर से हटा लीजिए तभी ये बाण आपको मुक्त करेगा क्यूंकि एक वही पत्ता बचा है जिसे मेरे बाण ने नहीं छेदा. ठाकुर जी उस बालक कि वीरता देख कर गद्गद हो गए और अपने मन में विचार किया कि ये वीर है परन्तु बालक है. इसलिए दुर्योधन बड़ी सरलता से इसे अपनी ओर ले सकता है और यदि बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेगा तो पांडव महाभारत नहीं जीत सकते क्यूंकि ठाकुर जी अपने भक्त को भी नहीं हारता हुआ देख सकते. इसलिए प्रभु ने लीला रची और बड़े दीन हीन बनकर बर्बरीक से बोले कि मै तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ. यदि भक्तो के सामने ठाकुर जी झोली फैला लें तो उस समय का क्या मंज़र होगा और उस भक्ति का क्या आलम होगा, ये बयां कर पाना अत्यंत कठिन है. इसलिए बर्बरीक ने भी कह दिया कि मांग लो प्रभु यदि जाँ भी मांगोगे तो दे दूँगा. भगवान हँस कर बोले, बस बेटा वही चाहिए दे दे. मुझे अपने शीश का दान कर दे. और धन्य है बर्बरीक की भक्ति, कि उसने बिना किसी दुःख के अपना शीश प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया और प्रभु से विनती कि कि हे प्रभु, मै आपको अपना शीश तो दे रहा हूँ पर मेरी एक इच्छा थी कि मै माहाभारत के युद्ध को अपनी आँखों से देखूं, आप मेरी ये इच्छा पूरी करो. तो भगवन ने बर्बरीक का शीश एक पहाड़ी पर विराजमान करा दिया और कहा कि तुम निष्पक्षता के साथ युद्ध को देखो. जींद के पास पढाना नाम से आज भी वह गांव है जहा बर्बरीक ने अपना शीश दान दिया था और उस जगह श्याम बाबा का बड़ा सुंदर मंदिर बना हुआ है. 

सच में बंधुओ, हमारे ठाकुर जी बड़े निराले हैं, अपने भक्त की परीक्षा भी लेते हैं और यदि सफल हो जाओ तो जान भी मांग लेते हैं. इसलिए किसी भक्त ने कितना सुंदर कहा

सब कुछ लेके परीक्षा हैं लेते
अब कौनसी राह चले संसारी
ऐसा मोहक जाल बिछाये 
हा भैया, थक कर रह गयी बुद्धि बेचारी
सोच समझ के सौदा कीजो
ये नन्द का लाल बड़ा व्यापारी

महाभारत के युद्ध के पश्चात्, जब भगवान पांडवों के साथ जा रहे थे, तो पांडव अहंकार के मद् में चूर थे. उन्हें लग रहा था कि ये सब उनकी वीरता के कारण कुआ है, उन्हें लगा कि महाभारत का युद्ध उन्होंने अपने बल पे जीता है. पर ठाकुर जी ने उनका अहंकार तोड़ने के लिए बर्बरीक को अपने पास बुलाया और कहा कि तुमने पूरा महाभारत का युद्ध देखा है, मुझे बताओ तुमने क्या देखा. तप बर्बरीक बोले प्रभु मैंने तो कुछ नहीं देखा, मुझे तो सिर्फ आपका सुदर्शन चक्र दिख रहा था जो कुरुक्षेत्र कि रणभूमि में घूम घूम कर पापियों का विनाश कर रहा था. इतना सुनते ही पांडव शर्म से पानी पानी हो गए और प्रभु इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बर्बरीक को यह वरदान दे दिया कि हे बेटा बर्बरीक, आज से तू मेरे नाम से जाना जायेगा, मै तुझे अपना नाम दान में देता हू तेरा नाम होगा श्याम, और तुझे कलयुग में मेरा अवतार मना जायेगा और खाटू नगर में तेरा विशाल मंदिर होगा जहा अनेक भक्त एके तेरी चौखट पे नाक राग्देंगे और तू उन्हें अभय दान प्रदान करना. 

इसलिए हमारे खाटू नरेश का बहुत विशाल दरबार है खाटू में और वह जो भक्त दर्शनों के लिए जाते है, वो बाबा के ही हो जाते हैं. जो जादू हमारे वृन्दावन के बांके बिहारी के विग्रह में है, वही जादू, वही नशा और वही शांति खाटू नरेश के शीश में भी है. मै ये सुनी सुनाई बात नहीं कह रहा हूँ, मुझे खुद अनुभव हुआ क्यूंकि इस द्वादशी को श्याम बाबा ने प्रथम बार मुझे अपने दर पे बुलाया और मैंने बाबा के दर्शन किये तो मन में यही भव आया

सूरत ऐसी कि सब गुलामी करें
और कदम इसे कि फ़रिश्ते भी चूमा करे
जिसने देखा तुझे एक बार मेरे बाबा
वो होके दीवाना खाटू कि गलियों में घूमा करे


खाटू नरेश की जय
हारे के सहारे की जय
~~~~~ बोलो श्याम प्यारे की जय ~~~~~
नीले घोड़े वाले की जय
तीन बाण धारी की जय