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Monday, November 28, 2011

बिहार पंचमी


ब्रज में प्रकटे हैं बिहारी, जय बोलो श्री हरिदास की
भक्ति ज्ञान मिले जिनसे, जय बोलो गुरु महाराज की 

मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, पंचमी को ही हमारे वृन्दावन बिहारी श्री बांके बिहारी जी का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है. इसी दिन अप्रकट रहने वाले प्रभु साक्षात् नित्य वृन्दावन में निधिवन में प्रकट हो गए थे. तीनो लोकों के स्वामी को इस दिन रसिक सम्राट स्वामी श्री हरिदास जी महारज ने जीत लिया था और वो अपने सभी भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके सामने आ गए थे. 

स्वामी श्री हरिदास जी निधिवन के कुंजो में प्रतिदिन नित्य रास और नित्य विहार का दर्शन किया करते थे और अत्यंत सुंदर पद गया भी करते थे. वो कोई साधारण मनुष्य नहीं थे, भगवन कि प्रमुख सखी श्री ललिता सखी जी के अवतार थे. जब तक वो धरती पर रहे, उन्होंने नित्य रास में भाग लिया और प्रभु के साथ अपनी नजदीकियों का हमेशा आनंद उन्हें प्राप्त हुआ. उनके दो प्रमुख शिष्य थे. सबसे पहले थे उनके अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी जिनको स्वामी जी ने ठाकुर जी की सेवा के अधिकार दिए और आज भी वृन्दावन में बांके बिहारी मंदिर के सभी गोस्वामी जगन्नाथ जी के ही कुल के हैं. उनके दूसरे शिष्य थे उनके भतीजे श्री विठ्ठल विपुल देव जी. बिहार पंचमी के दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन भी होता है. 

स्वामी जी के सब शिष्य उनसे रोज आग्रह किया करते थे कि वो खुद तो रोज नित्य विहार का आनंद उठाते है कभी उन्हें भी यह सौभाग्य दें जिससे वो भी इस नित्य रास का हिस्सा बन सके. पर स्वामी जी ने कहा की सही समय आने पर उन्हें स्वतः ही इस रास का दर्शन हो जायेगा क्योंकि रास का कभी भी वर्णन नहीं किया जा सकता. इसका तो केवल दर्शन ही किया जा सकता है और वो दर्शन आपको भगवान के आलावा कोई नहीं करा सकता. स्वामी जी का एक कुञ्ज था वो जहा वो रोज साधना किया करते थे. उनके सभी शिष्य इस बात को जानने के लिए काफी व्याकुल थे कि ऐसा क्या खास है उस कुञ्ज में. एक दिन जिस दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन था, स्वामी जी ने सबको उस कुञ्ज में बुलाया. जब सब विठ्ठल विपुल देव जी के साथ उस कुञ्ज में गए तो सब एक दिव्या प्रकाश से अंधे हो गए और कुछ नज़र नहीं आया. फ़िर स्वामी जी सबको अपने साथ वह लेकर आये और सबको बिठाया. स्वामी जी प्रभु का स्मरण कर रहे थे, उनके सभी सिष्य उन का अनुसरण कर रहे थे और सबकी नज़रे उस कुञ्ज पर अटकी हुई थी और सब देखना चाहते थे कि क्या है इस कुञ्ज का राज़. तो सबके साथ स्वामी जी यह पद गाने लगे

माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे
प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रहीहै न तरिहहिं जैसें 
अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें 
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें 




स्वामी जी कि साधना शक्ति से उन दिन उन सबके सामने बांके बिहारी जी अपनी परम अह्लाद्नी शक्ति श्री राधा राणी के साथ प्रकट हो गए.

चेहरे पे मंद मंद मुस्कान, घुंघराले केश, हाथों में मुरली, पीताम्बर धारण किये हुआ जब प्रभु कि उस मूरत का दर्शन सब ने किया तो सबका क्या हाल हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता. वे अपनी पलक झपकाना भी भूल गए और ऐसे बैठे हुए हैं मानो कोई शरीर नहीं बल्कि एक मूर्ति हैं. 

स्वामी जी कहते है कि देखो प्रभु प्रकट हो गए हैं. प्रभु कि शोभा ऐसी ही है जैसी घनघोर घटा कि होती है. यह युगल जोड़ी हमेशा विद्यमान रहती है. प्रकृति के कण कण में युगल सरकार विराजमान है. और ये हमेशा किशोर अवस्था में ही रहते हैं. स्वामी जी के आग्रह से प्रिय और प्रीतम एक दूसरे के अंदर लीन हो गए और फ़िर वही धरती से स्वामी जी को एक दिव्या विग्रह प्राप्त हुआ जिसमे राधा और कृष्ण दोनों का रूप है और इसी विग्रह के माध्यम से ठाकुर जी हमें श्री धाम वृन्दावन में दर्शन देते हैं. यही कारण है कि ठाकुर जी का आधा श्रृंगार पुरुष का होता है और आधा श्रृंगार स्त्री का होता है. 

यह त्यौहार श्री धाम वृन्दावन में आज भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. सुबह सबसे पहले निधिवन में प्रभु के प्राकट्य स्थल में जो भगवन में प्रतीक चरण चिन्ह है उनका पंचामृत अभिषेक किया जाता है. फ़िर एक विशाल सवारी स्वामी जी की वृन्दावन के प्रमुख बाजारों से होती हुई ठाकुर जी के मंदिर में पहुँचती हैं. स्वामी जी कि सवारी में हाथी, घोड़े, कीर्तन मंडली इत्यादि सब भाग लेते हैं. सवारी के सबसे आगे तीन रथ चलते हैं. इनमे से एक रथ में स्वामी श्री हरिदास जी, एक में गोस्वामी जगन्नाथ जी और एक रथ में विठ्ठल विपुल देव जी के चित्र विराजमान होते हैं. ये रथ रज भोग के समय ठाकुर जी के मंदिर में पहुँचते है और फ़िर तीनो रसिकों के चित्र मंदिर के अंदर ले जाये जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन ठाकुर जी हरिदास जी महाराज कि गोद में बैठकर उनके हाथों से भोग लगाते हैं. 

यदि आपको किशोरी जी इस दिन अपने धाम वृन्दावन में बुला लें तो आपका सौभाग्य है परन्तु यदि किशोरी जी नहीं भी बुलाती हैं तो मै आप सब से आग्रह करूँगा कि सुबह आप अपने घर पे ही बिहारी जी को भोग लगाये और संध्या के समय प्रभु की आरती करिये और उनके भजन में झूमते रहिये. आप पर कृपा ज़रूर बरसेगी. और आपको यह जानकार बहुत खुशी होगी कि इसी दिन भगवन श्री राम का जानकी जी के साथ विवाह भी हुआ था. इसलिए बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है.


इस वर्ष बिहार पंचमी 29 नवम्बर 2011, मंगलवार को मनाई जायेगी. 

आपको बिहारी जी के प्राकट्य उत्सव की बहुत सारी बधाई  

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Monday, November 21, 2011

Exclusive Pics Of Gwalior Katha & Upcoming Katha Schedules

 
                                                                ( Aan Kut Pooja )

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(Kalash Yatra,First Day of katha)

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(He Guru dev,un Bankhe Bihari ke Naino se to ap becha lete ho lekin Ye Apki Tirchi nain To hume Ghayal kar deti hai.. )

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आगामी कथाएँ 


परम श्रधेय आ गो श्री मृदुल कृष्ण शास्त्री जी महाराज 






१. 23 नवम्बर से 29 नवम्बर : राणी सती दादी मंदिर परिसर 
                                                 झुंझुनू, राजस्थान 

                        समय: दोपहर 2 बजे से 6 बजे तक 

       (इस कथा का सीधा प्रसारण केवल अध्यात्म चैनल पर)

२. 17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर : भोपाल, मध्य प्रदेश

३. 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर : कोलकाता, पश्चिम बंगाल


"" विशेष कार्यक्रम ""

२७ नवम्बर २०११
कीर्तन तत्पश्चात भोजन 
सुबह १० बजे से दोपहर १२ बजे तक 

मृदुल वृन्दावन आश्रम
 जयपुर , राजस्थान 


परम श्रधेय आ श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी महाराज 






१. 1 दिसम्बर से 7 दिसम्बर : गुना, मध्य प्रदेश

२. 9 दिसम्बर से 15 दिसम्बर : कोडरमा, झुमरीतलैया

३. 17 दिसम्बर से 23 दिसम्बर : कोलकाता

४. 25 दिसम्बर से 31 दिसम्बर : कमला नगर, दिल्ली 
                   














सभी कथाओं को LIVE या D-LIVE देखा जा सकता है, केवल अध्यात्म चैनल पर. 
अध्यात्म चैनल को इन्टरनेट पर देखने के लिए लॉग इन करे  http://www.adhyatmtv.com/

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Saturday, November 5, 2011

Tulsi Vivah Katha And Katha Information


एक लड़की जिनका नाम वृंदा था राक्षस कुल मैं उनका जन्म हुआ था,बचपन से ही उनमें कृष्ण भक्ति के बीज की धीमी धीमी सुगंद आने लगी थी, पूरी जिन्दगी उन्होंने बड़े प्रेम भाव से प्रभु की सेवा पूजन किया,जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल रजाजलंदर से हुआ,जालंदर जल में ही जन्मा था,और वह राक्षस कुल का रजा था,लेकिन वृंदा जी इन सब से परी थी वह सिर्फ निष्टा पूर्व अपना पत्नी धरम का पालन करती थी.


शादी के कुछ समय पश्चात् देवताओ और दानव
में युद्ध हुआ,तभी वृंदा जी ने संकल्प लिया जब तक अप युद्ध से वापिस नही आजाते मैं पूजा मैं बेथ कर आपकी सलामती का अनुष्ठान करुँगी और संकल्प तब तक नही तोदुंगी जब तक अप वापिस नही आजाते,जलंदर जी युद्ध में चले गए और यह वृंदा जी ने अनुष्ठान आरंभ किया,वृंदा जी के अनुष्ठान ये प्रभाव हुआ,युद्ध में जलंदर जी को कोई देवता नही जीत सखा और हरते हुए भगवन विष्णु जी के पास गए..

सबने भगवान रख्षा की प्राथना की तो प्रभु ने कहा- वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नही कर,उसकी भक्ति सची है.
तो देवता बोले-भगवन और दूसरा कोई उपाए नजर नही अब अप ही हमारी रख्षा करे और उपाए निकले.

तभी भगवान श्री विष्णु ने जलंदर का रूप धरा और वृंदा के सन्मुख जा के खड़े होगये,वृंदा ने जेसे ही अपने पति को देखा यह अनुष्ठान से उठ गई और अपने पति के चरण छुए,जेसे ही उनका अनुष्ठान टुटा वह देवताओ ने जलंदर का सर काट के अलग कर दिया और जलंदर का कटा सर वृंदा के महेल आ गिरा,वृंदा ने देखा तो वह सोच में पड़ गई मेरे पति का सर यह है,तो मेरे सामने जो खड़े है कौन है.??
                                                                                                                          वृंदा ने पुचा- अप कौन है.?
तभी भगवन अपने असली रूप मैं अगये और कुछ न बोले परन्तु वृंदा जी सब समझ गई और तभी वृंदा ने भगवान से कहा,आपको तनिक दया नही आई मेरे पति को मरवाते,में आपको को श्राप देती हु अप पत्थर के होजाओ.प्रभु तुरंत पत्थर के बन गए,तभी देव लोक में हाहाकार मच गया,सभी देवता वृंदा जी के पास अगये लक्ष्मी जी बेहद रो रो कर विलाप करने लगी,सबकी प्राथना सुनाने के बाद वृंदा जी ने प्रभु को श्राप से मुक्त किया और पति के सर के साथ अग्नि मैं सती होगी.

उनकी राख से फिर उसी समय एक पोधा निकला उसे देख भगवान विष्णु ने कहा- अज से इसका नाम तुलसी है. और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं किसी भी वास्तु को बिना तुलसी के सवीकार नही करूँगा,यह मुझे प्राणों से भी प्यारी है,तभी से सभी देवताओ और मनुष्य ने तुलसी जी का पूजा आरंभ होगई,फिर अंत में सभी देवताओ ने कार्तिक मास की,देवउठन एकादशी के दिन शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह किया जिसे अज भी हम पुरे प्रेम और श्रधा से मानते है.और इस दिन जो व्यक्ति तुलसी विवाह कथा सुनता या पड़ता उसे अजीवन भक्ति का वरदान मिलता है.

सोभाग्य की बात है व्हे दिन अज है अप सभी को हम सबकी और गुरुवर की और से तुलसी विवाह की बहुत बहुत बधाई..
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Bade Guruji's katha live telecast only on adhyatm tv
Date-7 nov to 13 nov:
Location-theme park, kurukshetra
Timing-2:00 pm to 6:00 pm
organiser: shri bankey bihari seva trust

or

Date-23 nov to 29 nov
Location-Rani sati dadi mandir, jhunjhunu, rajasthan
Timing-2:00 pm to 6:00 pm
organiser-shri bhagwat mission trust

Chote Guru Gwalior katha detail


Date-8 nov to 14 nov
Timing - 12 to 4 noon
Location- Suresh nagar,tukoniya park ke pas,shiv mandir,tathipur,gwalior (M.P)
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Tuesday, November 1, 2011

गोपाष्टमी एवं अक्षय नवमी

जो प्रणत होए मेरे ठाकुर को 
वा करे विपिन को वास
और दीप जलें आनंद मिले 
ऐसो या कार्तिक मास 


पद्मपुराण और स्कन्दपुराण में श्री बांके बिहारी जी महाराज ने स्वयं कार्तिक के पवित्र मास के महात्म का बहुत ही सुंदर ढंग से विस्तार किया है. उन्होंने कहा है कि जो एक बार इस मास में ल्रभु को प्रणत हो जाता है, उसे प्रभु हमेशा अपने चरणों का दास बना लेते हैं. वैसे तो इस मास में भक्त अनेक नियम, व्रत आदि लेते हैं, परन्तु पद्मपुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति कार्तिक मास में केवल सूर्योदय से पहले स्नान कर ले तो उसे प्रत्येक तीर्थ में स्नान करने का फल प्राप्त होता है. प्रभु ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं कार्तिक मास में ही की थीं. पूज्य गुरुदेव से हम सब ने उखल बंधन लीला का प्रसंग सुना है. तो उखल बंधन लीला कार्तिक के इसी पवित्र मास में हुई थी. परभू माँ के प्रेम के बंधन में बांध गए थे. इसलिए इसे दामोदर मास भी कहा जाता है और ब्रज वासी ऐसा मानते है कि जो इस मास में प्रभु कि भक्ति करता है तो बिहारी जी उसके प्रेम के बंधन में भी बांध जाते हैं और यदि कोई शक्ति भगवन को बांध सकती है तो वेह है केवल भक्तो के आंसुओ कि धारा. 

कार्तिक के इस पवित्र मास में प्रभु ने एक और भी बड़ी सुंदर लीला की थी. हम सब जानते है कि प्रभु को गौएँ बहुत प्रिय है. तो भक्तों हमारे कन्हैया कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पहली बार गौएँ चराने के लिए गौ चारण वन गए थे और उन्होंने वहाँ अपनी मुरली से गौओं को भी सम्मोहित कर दिया था. और इसी दिन को हमारे ब्रज में गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है. 

गोपाष्टमी के ठीक अगले दिन अर्थार्थ कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है. हमारे शास्त्रों ऐसा लिखा हुआ है कि त्रेता युग इसी दिन से प्रारंभ हुआ था. और इसी दिन सूर्य नारायण ने माँ दुर्गा कि उपासना की और उन्होंने माँ ने असंख्य उपहार भेंट में दिए जिन्हें हम आज सौर उर्जा के रूप में प्रयोग कर रहे हैं. अक्षय नवमी के दिन भक्त लोग मथुरा-वृन्दावन कि युगल परिक्रमा लगाते हैं. सूर्योदय के पूर्व उठकर सभी भक्त एवं रसिक श्री यमुना जी का स्नान करके परिक्रमा प्रारंभ करते हैं और ब्रज रज को अपने मस्तक से लगाकर नंगे पाँव संध्या तक परिक्रमा पूर्ण करके उसे बिहारी जी के श्री चरणों में समर्पित करते हैं. ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने का एक अर्थ यह भी है कि आप आपने लिए मुक्ति के द्वार खोल रहे हैं क्यूंकि जब मुक्ति ने अपनी मुक्ति पूछी थी प्रभु से तो भगवन ने उसे भी यही कहा था कि ब्रज रज को अपने मस्तक पर लगाने से मुक्ति भी मुक्त हो जाती है.

वृन्दावन कि गलिन में मुक्ति पड़े बिलखाये
मुक्ति कहे गोपाल सों तू मेरी मुक्ति बताये 
पड़ी रह्यो या गलियों में यहाँ पंथी आवे जाएँ 
ब्रज-रज उड़ मस्तक लगे, तो मुक्ति मुक्त है जाये 


तो भक्त जन इसी ब्रज-रज को अपने मस्तक पर लगाये हुए श्री धाम वृन्दावन के सभी प्रमुख स्थानों के दर्शन करते हुए मधु पूरी मथुरा में प्रवेश करते हैं. मथुरा में भी सर्व-प्रथम सब विश्राम-घाट पे यमुना जी का स्नान करते हैं और फ़िर मथुरा में मंदिरों के दर्शन करते हैं. अंत में जब सब ब्रज-रज से अपने शरीर को सुसज्जित कर लेते है, ब्रज-रज से अपना श्रृंगार करते हैं और वृन्दावन लौटते हैं और बाँके बिहारी जी को अपनी यात्रा समर्पित हैं. वैसे तो इस प्रथा के लिए अत्यंत बल और सहन शक्ति कि आवश्यकता होनी चाहिए परन्तु ऐसा देखा गया है कि मेरे ठाकुर जी कि कृपा से कमज़ोर दिखने वाले भक्त भी इस परिक्रमा को बड़ी सरलता से सम्पुर्ण कर लेते हैं. 

भगवान के लिए यह संभव नहीं है कि वह अपने सब भक्तों को यह सौभाग्य दें कि वे वृन्दावन में आकर परिक्रमा लगाये. परन्तु यदि आप प्रभु को याद करते रहोगे तो भगवान भी आपके प्रेम से विवश होकर आपको बुला ही लेंगे. और जब तक प्रभु न बुलाए तब तक का इंतजाम हमारे पूज्य छोटे गुरुदेव श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी ने कर ही रखा है. आप सब मानसिक परिक्रमा गुरुदेव के साथ राधे नाम का आश्रय लेकर लगाएं और मन में यही भाव रखें कि कभी हमें यह सौभाग्य भी मिले कि हम श्री धाम में जाकर इस परिक्रमा को करें. 

आप सब पर राधा राणी अपनी दया बनाये रखे

गुरुदेव का आशीर्वाद आप सब पर बना रहे 

प्रेम से कहिये 
श्री राधे ! श्री राधे !! श्री राधे !! श्री राधे ! श्री राधे