बसंत ऋतु या बसंत पंचमी के बारे में कुछ भी लिखने से पूर्व मई आप सब भक्त-मित्रों से क्षमा माँगना चाहता हूँ। इस बार एक काफी लम्बे अंतराल के बाद आप सबसे मिल रहा हूँ। पहले तो मै स्वयं अस्वस्थ्ताओं का शिकार हो गया और उसके पश्चात् मेरे बहुत करीबी रिश्तेदार मुझे हमेशा के लिए छोड़कर प्रभु श्री बांके बिहारी के चरणों में लीन हो गए। इसलिए मई कोई लेख नहीं लिख पाया। पर अब बसंत ऋतु भी दस्तक दे चुकी है, और उसी विषय पर मेरा यह लेख आधारित है। आशा है आपको पसंद आएगा।
आप सब जानते हैं कि हमारे देश में 6 ऋतु होती हैं, और उनमे से प्रमुख है बसंत ऋतु जो माघ और फाल्गुन मास में मनाई जाती है। भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि मई ऋतुओं में बसंत हूँ, इसलिए इस ऋतु को ऋतु राज भी कहा जाता है। यह खुशहाली और हरीतिमा का प्रतीक है और मुख्या रूप से दो प्रमुख पर्व इस समय मनाये जाते हैं। सर्वप्रथम बसंत पंचमी जिस दिन विद्या संगीत की देवी माँ शारदा की उपासना की जाती है और दूसरा पर्व होली होता है जिसे पूरे भारत में बड़े रंगीन तरीके से मनाया जाता है। यदि बसंत पंचमी की बात करें तो माघ मास, शुक्ल पक्ष, पंचमी को बसंत पंचमी कहते हैं। इस दिन पीत रंग का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि पंजाब के खेतों में पीली सरसों लहलहा रही होती है और इस दिन से उस फसल की कटाई शुरू हो जाती है। संगीत और विद्या प्रेमी लोग इसे माँ शारदा की भक्ति का दिन मानते हैं और पीत वस्त्र धारण करने की भी प्रथा बहुत प्रचिलित है। मैंने भी माँ के आशीर्वाद से अपनी कलम से उनके लिए कुछ लिखा है, आप सबके लिए प्रस्तुत है:
वीणा है शोभायमान जिन कर कमलों में
सुंदर कमल का क्या आसन सजाया है
कोटि रावियों के जैसा तेज मुख कमल पे
कमल से नैनो में क्या प्यार समाया है
आली मुस्कान है कमल से अधरों पे
चरण कमल में ये शीश झुकाया है
विद्या-संगीत की देवी श्वेत वर्णी हैं
कमलों से कोमल शारदा महामाया है
करते हैं ध्यान सदा आपका ही ज्ञानी जन,
मुनियों ने आपके गुणों का गान गाय है
सभी देवी देवता नवाते सर आपको
राम चन्द्र का भी काम अपने बनाया है
सारे राग सारे स्वर रहते आपके अधीन
पर पार आपका किसी ने भी न पाया है
महामाया इस ही लिए तो तुम्हे कहते हैं
जग से निराली महा शारदा की माया है
अब यदि बसंत ऋतु की बात करे तो यह पर्व हमारे पंजाब के भाई सबसे ज्यादा उल्लास के साथ मानते हैं। पंजाब में एक गाँव है जिसका नाम है फिरोजपुर। इस गाँव का बसंत पंचमी देश विदेश में प्रचिलित है। यहाँ इसे पतंग उड़ा कर मनाया जाता है और विदेशों से भी अनेक सैलानी यहाँ केवल यह पतंग उत्सव देखने के लिए आते हैं। यह पर्व सर्द मौसम के विश्राम का प्रतीक होता है और इस दिन पृथ्वी, सूर्य नारायण और माँ गंगा की भी पूजा का विधान होता है। केवल भारत में नहीं, हमारे पडोसी मुल्क पकिस्तान में भी यह पर्व मनाया जाता है और वहां इसे उर्दू में जश्न-इ-बहारां कहा जाता है। मुख्य र्रोप से यह त्यौहार पाकिस्तान के लाहौर में मनाया जाता है परन्तु अब इसकी ख्याति कराची, इस्लामाबाद, गुजरांवाला इत्यादि अन्य क्षेत्रों में भी पहुँच रही है। पकिस्तान के मुस्लिम भाइयों में भी बसंत के इस त्यौहार को पहुंचाने का श्रेय सूफी संतो को जाता है। सूफी कवियों ने अपनी रचनाओ में इस पर्व का इतना उल्लेख किया है कि पाकिस्तान भी इनसे प्रभावित हुए बिना न रह सका। निजामुद्दीन औलिया, ख्वाजा भक्तियार काकी और यहाँ तक की आमिर खुसरो साहब ने भी इस बसंत को बेहद रूहानी तरीके से अपनी कलम से चित्रित किया। खुसरो साहब के बसंत से कुछ पंकितयां याद आई हैं:
आज बसंत मनाले , सुहागन, आज बसंत मनाले
अंजन-मंजन कर पिया मोरी, लम्बे नेहर लगाले
तू क्या सोवे नींद की मासी, सो जागे तेरे भाग
सुहागन, आज बसंत मनाले
ऊंची नार के ऊंचे चितवन, एसो दियो है बनाये
शाह आमिर तुहे देखन को, नैनो से नैन मिलाये
सुहागन, आज बसंत मानले
परन्तु मुझे एक बात पर बेहद दुःख होता है। आप सब जानते है आज लोग प्रेम चतुर्दशी भी मन रहे हैं या यूँ कहूं की प्रेम चतुर्दशी ही मन रहे हैं। किसी को ख्याल नहीं है कि हमारे धर्म का भी एक विशेष पर्व है जिसका हमें सम्मान करना चाहिए। मई उस सभ्यता का भी विरोध नहीं करता, मै विरोध करता हूँ इस बात का कि लोग हिन्द को भूल गए। मेरी नज़र में तो ये दुस्साहस ही है कि उस असीमित प्रेम को एक दिन के बंधन में बाँध दिया लोगों ने। और आज सब अपनी लाज शर्म त्याग के प्रेम की गरिमा को कलंकित कर रहे होंगे उसमे किसी को दोष नहीं दिया जाएगा। फिर भी, मुझे यकीन है जो लोग इस लेख को पढ़ रहे हैं, उन्हें तो अपनी संस्कृति और उसकी मर्यादा का पूरा ध्यान होगा और उसे बचने में वो पूरा सहयोग करेंगे। आप सबको बसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकमाना।