वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को हमारे भारत वर्ष में अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है. अक्षय का अर्थ होता है जो कभी नष्ट न हो. हमेशा हमारे साथ रहने वाली वस्तु को अक्षय कहा जाता है. हम भारतियों का ऐसा मानना है कि इस शुभ दिन हम जो भी कार्य करते हैं, उसका फल हमें सदा मिलता रहता है. इसलिए हम लोग इस दिन अपने खजाने को भरते हैं अर्थार्थ ऐसी विधि है कि लोग इस दिन कुछ स्वर्ण कि वस्तु खरीद लेते हैं क्यूंकि उनका ऐसा विश्वास है कि इस दिन खरीदा गया सोना कभी साथ नहीं छोड़ेगा.
मुझे इस विचार से कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु बंधुओ ज़रा सोचिये कि इस संसार में ऐसी कौनसी चीज़ है जो हमारा साथ कभी नहीं छोडेगी. यदि वेह वस्तु हमसे अलग नहीं होगी तो एक दिन हमें उस वस्तु का त्याग करना होगा क्यूंकि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है. यदि कोई ऐसी चीज़ है जो हमेशा हमारे साथ रहेगी तो वो है हमारे बांके बिहारी और हमारी राधा राणी का नाम. इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इस दिन अपनी तिजोरी को तो भरें पर अपने प्रभु को भी याद कर लें क्यूंकि वास्तविकता में अक्षय तो वही हैं. केवल प्रभु कि कृपा ही है, केवल हमारे गुरुजनों का आशीर्वाद ही है और केवल हमारे माता-पिता का प्यार ही है जो हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता.
हमारे रसिक चक्र चूडामणि स्वामी श्री हरिदास जी महाराज कहते हैं:
हरी को ऐसो ही सब खेल
मृग तृष्णा जग व्याप रह्यो है, कहूँ बिजोरी न बेल
धन मद् जोबन मद् रज मद्, ज्यों पंछिन में डेल
कहें श्री हरिदास यही जिया जानो, तीरथ को सो मेल
स्वामी जी कहते हैं कि ये जग तो एक शिकारी का जाल है जो ऊपर से देखने में तो बड़ा सुंदर प्रतीत होता है परन्तु जब जीव इसमें फंस जाता है, तो उसके पास पश्चाताप के सिवा कोई मार्ग नहीं बचता. यहाँ तो सब मृग मतलब हिरन कि भांति हैं, सच्ची कस्तूरी हिरन कि नाभि में होती है और उसकी सुगंध से मोहित होकर वेह उसको पूरे जंगल में ढूँढता फिरता है. उस बेचारे को यह नहीं पता कि जिस सुगंध के लिए वो मारा मारा फ़िर रहा है वेह सुगंध उसी के शरीर का हिस्सा है. उसी प्रकार बंधुओ हम भी माया मोह के पीछे भागते हैं और यह नहीं जानते कि सारी दुनिया कि दौलत वो इश्वर तो हमारे भीतर ही विराजमान है. तीरथ को सो मेल, इस पंक्ति से स्वामी जी बताना चाहते हैं कि अरे मूर्ख यह जग तेरा नहीं है, यहाँ तो तू एक यात्रा के लिए आया है. जिस प्रकार जब हम किसी तीर्थ में जाते हैं, तो हम वहां के मंदिर, उनकी भव्यता, वहां के पुष्प, वहां के बाघ-बगीचे, हम तीर्थ कि प्रत्येक वस्तु का आनंद उठाते हैं यह जानते हुए कि इनमे से कुछ भी हमारा नहीं है. हमें तीर्थ में हमारे ही जैसे सह-यात्री भी मिलते हैं, उनसे हमारा रिश्ता भी बनता है परन्तु वो रिश्ता तभी तक है जब तक हम वहां हैं. एक बार हम वापिस अपने ठिकाने पे पहुच जाते हैं तो हमारे पास बस हमारी यार्ता कि यादें शेष रह जाती हैं. उसी प्रकार से ये दुनिया और यहाँ के रिश्ते भी तीर्थ के मिलन के समान है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा असली ठिकाना तो बांके बिहारी के चरणों में है.
बंधुओ, अपने ठाकुर जी के चरणों के बारे में तो मै कहा तक लिखूं. इनके चरनी कि महिमा का मै कहा तक बखान करूँ. स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज राम चरिता मानस में कहते हैं कि ठाकुर जी के चरणों कि महिमा तो अनंत है, कोई भी कवी कोई भी लेखक पूर्ण रूप से उनके चरणों कि व्याख्या नहीं कर सकता आप तो बस इतना समझ लें कि स्वयं राम भी राम चरण कि महिमा नहीं गा सकते. सूरदास जी महाराज ने अपने पद में ठाकुर जी के चरनी के विषय में बड़ा सुंदर लिखा है:
बन्दऊ चरण कमल हरी राय
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघे, अंधे को सब कछु दर्शाए
बहिरो सुने, मूक पुनि बोले, रंक चले सिर छत्र धराए
सूरदास स्वामी करुनामय, बार बार बंदों तेहि पाएं
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघे, अंधे को सब कछु दर्शाए
बहिरो सुने, मूक पुनि बोले, रंक चले सिर छत्र धराए
सूरदास स्वामी करुनामय, बार बार बंदों तेहि पाएं
सूरदास जी कहते हैं कि मेरे बांके बिहारी के चरणों के दर्शन कि महिमा तो इतनी विशाल है और उनकी महिमा तो इतनी अद्भुत है कि सारे असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं. लंगड़ा व्यक्ति पर्वत पार कर जाता है, अंधे को सब कुछ दिखने लगता है, बहरा सुन सकता है, गूंगा बोल सकता है और तो और एक भिखारी भी अपने सिर पर छत्र धरा सकता है. प्रभु के चरण दर्शन बहुत ही दुर्लभ है. बड़े बड़े योगी और साधक अनेक वर्षों तक ताप करते हैं परन्तु उन्हें प्रभु के चरणों का दर्शन प्राप्त नहीं होता. पर भक्तों के आगे तो प्रभु भी नतमस्तक हैं. आपने श्री धाम वृन्दावन में जब बिहारी जी के दर्शन किये होंगे तो अपने देखा होगा कि प्रभु के चरण नहीं दिखते. पूरे वर्ष में केवल एक दिन, इस अक्षय तृतीय को हमारे ठाकुर जी अपने प्रिय भक्तो पर कृपा करते हैं तो अपने चरण कमल के दर्शन का सौभाग्य प्रदान करते हैं. और संध्या के समय तो वो कुछ अधिक ही कृपालु हो जाते हैं. संध्या कल्लें दर्शनों में ठाकुर जी अपने सारे वस्त्र उतार देते हैं. अपनी कमर से केवल एक धोती बंधे हुए वो भक्तो को अपने संपूर्ण अंग का दर्शन देते हैं. ब्रज में इसे सर्वांग दर्शन भी कहा जाता है.
तो बंधुओ, इस अक्षय तृतीय पर लौकिक नहीं अलौकिक को पाने का प्रयत्न करिये. प्रभु का प्रसाद पाइए जो नश्वर नहीं है. हमारा इतिहास हमें दान करना सिखाता है, किसी ज़रूरतमंद को दान दीजिए और उसकी दुआ लीजिए क्यूंकि बुरे वक़्त में पैसा या रिश्ते काम नहीं आते, बुरे वक्त में तो केवल दुआ ही काम आती है.
~~~~~~~~~~~ जय बिहारी जी की ~~~~~~~~~~~
विशेष प्रसारण
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दिनांक : 21 अप्रैल से 27 अप्रैल
समय : सांय 03 बजे से 07 बजे तक
स्थान : सारंगगढ़, छत्तीसगढ़